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________________ हमें आत्मानुलक्षी बनाती है। नमस्कार के साधक को स्वलाभ देखना हैं, परलाभ नहीं । नमस्कार करने से सामने वाले नमस्करणीय में क्या परिवर्तन आया - यह बात न देखकर हमें तो यह देखना है कि मेरे में क्या परिवर्तन आया ? मेरी कषायवृत्ति घटी या न घटी ? अभिमान द्रवित हुआ या नहीं ? मान दशा शिथिल हुई या नहीं ? मेरे में नम्रता बढ़ी या नहीं ? विनयगुण विकसीत हुआ या नहीं ? यह परिवर्तन हमें अपने अन्दर देखना और लाना हीं नमस्कार की साधना का मुख्य हेतु है। नमस्कार भाव नमाने वाला है : ___ गृहिणी प्रातः घर में कल के बासी पानी को छानकर शुद्ध करती है । इसके लिये वह घड़े को झुकाती है । जब तक संपूर्णरुप से पानी न निकल जाए वहाँ तक वह उसे धीरे धीरे झुकाती रहती है, नमाती रहती है । जैसे जैसे घड़ा झुकता जाएगा वैसे वैसे उसके अन्दर रहा हुआ बासी पानी बाहर निकलता जाएगा । तत्पश्चात् छानकर वह नया पानी भर सकेगी । इस प्रक्रिया से हमें यह शिक्षा ग्रहण करनी है कि इस काया रुपी घट में से पुराना बासी सब कुछ निकाल देना है, क्यों कि काया को घट की उपमा तो अनेक स्थलों पर दी गई है । 'घट घट में व्याप्त आत्मा' इस वाक्य में घट शब्द काया के लिये प्रयुक्त हुआ है और आत्मा उसमें व्याप्त होकर रही है । अतः इस काया रुपी घट को नमाने से ही अन्दर स्थित सब जो भी बासी है वह बाहर निकल पाएगा । इसी के लिये ही पंचांग प्रणिपात है। पंचाग प्रणिपात में प्रथम हाथ जोड़कर काया रुपी घट को पकडकर नमाते रहना है, फिर घुटने टेककर काया को अर्ध नमाना है, तत्पश्चात कटि को झुकाकर नमाकर भूमि पर दोनों हाथों की कोहनियाँ स्पर्श कर सकें इस प्रकार रखकर नीचे झुकते जाना है । जिस प्रकार घड़े के मुख का भूमि के साथ स्पर्श करवाया जाता है तब पानी निकलता जाता है, उसी प्रकार हमें भी इस काया के मुँह-मस्तक का भूमि से स्पर्श करवाना होगा ताकि इसके द्वारा अंदर का सब पुराना बाहर निकल सकेगा । 110
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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