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ही गुणों को निकाल फेंकता है और जीवन को खोखला बना डालता है । अतः नमस्कार भाव में चुंबकीय शक्ति है । ____नमस्कार का ऐसा नियम है कि जीव जिसे नमन करता हैं उस नमस्करणीय के गुणों को वह अपने अन्दर खींच लेता है । अन्य के गुणों को खींचकर अपने अन्दर लाना, अथवा अन्य में दिखाई पड़ने वाले गुणों के प्रति अपने को लुभाने आकर्षित करने का कार्य यह नमो भाव-नम्रता गुण करता है । अतः नवकार महामंत्र कहता है कि गुणवान को नमो, गुणों को नमो । नवकार में ऐसे गुणवान् पाँच-पाँच परमेष्ठि हैं । उनके गुण भी अधिक हैं।
१) अरिहंत के ___.. .. १२ गुण २) सिद्ध के
... .. ८ गुण ३) आचार्य के
___.. .. ३६ गुण ४) उपाध्याय के
__.. .. २५ गुण ५) साधु पद के
..... २७ गुण पंच परमेष्ठि के कुल १०८ गुण हैं । ऐसे महान गुणों के धारक अपने पंच परमेष्ठि भगवंत हैं । उन्हें हम नमन करते हैं नमस्कार करते हैं । अपना नमस्कार एक और इनके गुण कितने ? गुण अनेक हैं, और ऐसे अनेक गुण अपने एक नमस्कार से आकर्षित होकर हमारे में आते हैं । 'नमो' भाव की कितनी बड़ी चुंबकीय शक्ति कहलाती है ? इसे हम एक प्रकार का (Magnetic Force या Magnetic Energy) नाम दे सकते हैं - यह चुंबकीय शक्ति आकर्षण का कार्य करती है ।
आकर्षण भी सजातीय का होता है - विजातीय का नहीं हो सकता । लोहचुंबक जिस प्रकार लोहकण Iron particles को ही आकर्षित कर सकता है, पत्थर अथवा पीतल को आकर्षित नहीं कर सकता, उसी प्रकार नमन - नमस्कारकर्ता साधक जो नमस्करणीय हैं उन्हीं को नमन करता है । उन नमस्करणीय के गुण ही हमारे में आते हैं । उन्हीं के गुणो का आकर्षण होगा। गुण सजातीय हैं । नमस्करणीय परमेष्ठि परमात्मा भी आत्मा हैं और नमन करने वाले हम भी आत्मा ही हैं । आत्मा की दृष्टि से हम दोनों सजातीय कहलाते हैं और आत्मगुणों की दृष्टि से भी सादृश्यता के योग से हम सजातीय कहलाते हैं । अरिहंत सिद्धादि परमेष्ठि आत्म स्वरुप हैं वे परमात्मा हैं और हम नमन करने वाले पामर आत्मा
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