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पहुँचने के लिये नमो भाव.... नमस्कार प्रवृत्ति - वंदन की क्रियादि सहायक हैं । एक बात निश्चित् है कि सम्पूर्ण आधार विनय गुण पर हैं । मोक्ष प्राप्ति का मूलबीज विनय गुण है । जिस प्रकार बीज में से फल की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार विनय बीज में से मोक्ष का फल प्राप्त होता है । विनय गुण पर बहुत बड़ा आधार है ।
विनय से शोभा है :
कुल रुप वचन - यौवन धन मित्रैश्वर्यसंपदापि पुंसाम् ।
विनय प्रशम विहीना न शोभते निर्जलेव नदी ॥ ६७ ॥
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न तथा सुमहार्घ्यरपि वस्त्राभरणैरलंकृतो भाति । श्रुत-शील-मूल-निकषो विनीत विनयो यथा भाति ॥ ६८ ॥ अपना कुल, रुप, वचन, यौवन, धन सम्पत्ति, मित्र और ऐश्वर्य संपत्ति का ठाठ ये सभी विनय और प्रशम भाव के बिना शोभायमान नहीं होते हैं। जिस प्रकार नीर विहीन नदी शोभित नहीं होती, उसी प्रकार कुल, रुप आदि सभी विनय से ही शोभित होते हैं, अर्थात् विनय गुण विनम्र भाव-स्वभाव के बिना इस कुल आदि का कुछ भी मूल्य नहीं है। इसी प्रकार आजकल लोग वस्त्रों और अलंकारो से अपनी शोभा की वृद्धि हेतु प्रयत्नशील रहते हैं, परन्तु वास्तव में व्यक्ति की शोभा वस्त्र और अलंकार से नहीं, बल्कि श्रुत और शील की कसौटी के पाषाण रुपी विनय गुण से होती है । अर्थात् शोभा गुण से होती है, बाह्य दिखावों से नहीं । वस्त्राभूषण तो मात्र बाह्य शरीर की शोभा में वृद्धि करेंगे, 'आत्मा की शोभा कौन बढ़ाएगा ? विनयादि गुणरहित व्यक्तिओं की शोभा नहीं होती है ।
पर
'नमो' में चुंबकीय स्थिति :
नमस्कार भाव में और नमो गुण में Magnetic energy चुंबकीय शक्ति है । जिस प्रकार एक चुंबक अपने चारों ओर फैले हुए लोह - कणों को आकर्षित कर लेता है, इसी प्रकार नमो भाव से विकसित हुआ विनय गुण भी चुंबक बन जाता है । उसका काम चारों और के सभी गुणों को आकर्षित कर खींच लेना है । इससे विपरीत यदि व्यक्ति में अभिमान अथवा अविनय आदि दुर्गुण हों तो वे दुर्गुण उतने
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