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विनयगुण है । विनयगुण ही मोक्ष तक की श्रेणी इसी प्रकार संभव है ।
मोक्ष
भवक्षय ११
श्रुतज्ञान ४
शुश्रुषा ३
विनय २
9
विरति ५
संवर
तपोबल ७
६
निर्जरा
अयोगीपना १०
क्रियानिवृत्ति ९
इस प्रकार विनय गुण की प्राप्ति से उत्तरोतर मोक्ष की सीढ़ी पर जीव आगे से आगे विकास करता ही जाता है और एक में से दूसरा फल प्राप्त करता जाता है । एक का फल आगे दूसरे के लिये क्रियारुप कारण बन जाता है और फिर वही कारण क्रियारुप बनकर आगे के फल में परिणत होता है। इस प्रकार क्रमशः जीव मोक्ष तक पहुँच जाता है । विनय गुण की यह परम्परा है । बात तो बिल्कुल सही है । इतने सारे गुणों का आधार विनय पर है, परन्तु विनय का आधार किस पर है ? तो कहना ही पड़ेगा कि विनय गुण का आधार नमस्कार और वंदन पर है ।
विनय नमो भाव की दृष्टि से गुणप्रधान है और यहि विनय गुण नमस्कार और वंदन की क्रिया पर आधारित है, अतः विनय क्रियात्मक सक्रिय है । नमस्कार और वंदन उसकी क्रियाएँ है । गुण का ही आचरण वह क्रिया बन जाती है और क्रिया कार्य बनती है, क्रिया फल दिलवती है । नमस्कार और वंदन की क्रियाएँ विनय का फल दिलवाएगी फिर विनय का गुण घोटते घोटते आगे बढ़ते ऊपर ऊपर के विशिष्ट गुण प्राप्त होंगे । उस प्रकार नमस्कार वंदन की क्रिया महत्वपूर्ण है और यही विनय तक पहुँचाती है । एक बार मोक्ष की सीढ़ी तक पहुँचना आवश्यक है, फिर तो चढ़ना ही चढ़ना है । चढ़ने के लिये पहुँचना और
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