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में नमो भा रहना आवश्यक है इस प्रकार जब जब अपेक्षाएँ बदलती रहेंगी, तब तब उस इष्टिकोण से देखने पर दोनों की महत्ता भिन्न भिन्न प्रकार से समझ में आती रहेगी ।
वंदन के प्रकार :
गुरुवंदण - मह - तिविहं, तं फिट्टा छोभ बारसावतं । सिरनमणाईसु पढमं, पुण्ण खमासमण दुगि बीअं ||१ ||
वंदन
थोभवंदन
फिट्टावंदन
द्वादशावर्तवंदन
गुरुवंदन भाष्य की इस प्रथम गाथा में उपरोक्त तीन प्रकार के वंदन बताए गए हैं । यद्यपि यहाँ गुरूवंदन में विवक्षा गुरूवंदन की है, फिर भी देव गुरू - धर्म और धर्मोपकरण तथा व्यवहारादि में वंदन प्रसिद्ध और प्रचलित है। फिर भी व्यवहार में जो प्रसिद्ध रीति है उसके अनुसार हमने नमस्कार और वंदन दोनों को देव और गुरू दोनों में बाँट रखा है अर्थात् देव में नमस्कार की प्रधानता रख कर हम उन्हें नमस्कार करते हैं, जब कि गुरु में वंदन की प्रधानता रखकर गुरु को वंदन करते हैं । किसी को भी कहते हुए भाषा के व्यवहार में इस प्रकार प्रचलितता आ गई है । दादा को, भगवान को नमस्कार करके आओ और उपाश्रय जाकर गुरुवंदन करके आओ, गुरु वंदन किया ? भगवान को नमस्कार किया ? इस प्रकार के व्यवहार से दोनों के बीच वंदन विधि को बाँट दिया हो - ऐसा लगता है। जैसे कि द्वादशावर्त वंदन मात्रगुरू को ही किया जाता है - यही वंदन मंदिर में प्रभु को नहीं किया जाता, परन्तु वास्तवमें ऐसा कोई वर्गीकरण नहीं है ।
जो खमासमण क्षमाश्रमण गुरु को किया जाता है वही सूत्र बोलकर भगवान को भी नमस्कार किया जाता है । यह एक ही सूत्रं देव और गुरु दोनों को तथा धर्म और धर्मोपकरण को वंदन करते समय बोलकर खमासमण दिया जाता है । इस में कुछ भी गलत नहीं है । इस में ननमस्कार भाव है और नम्रता तथा विनय की प्रवृत्ति है ।
यहाँ तीन प्रकार के वंदन कहे गए हैं जिनमें प्रथम फिट्टावंदन है । फिट्टावंदन
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