________________
करने की इच्छा हो तो सामने जाकर हाथ जोड़कर फिर उनके चरण स्पर्श करके मस्तक पर चढाते हैं । लोक व्यवहारमें इसे वंदन होना कहते हैं, कि पुत्र ने पिता को वंदन किया,, भाविक आत्माओं ने गुरु महाराज को वंदन किया ।
नमस्कार से वंदन में प्रवेश
नमस्कार प्रथम दर्शी क्रिया है, जब कि वंदन उत्तरवर्ती क्रिया है । नमस्कार संक्षिप्त स्वरुप में है, जब कि वंदन विस्तृत स्वरुप में है । नमस्कार अल्प शब्दात्मक अल्प सूत्रात्मक है, जब कि वंदन अधिक शब्दात्मक, अधिक सूत्रात्मक है | नमस्कार अर्ध द्रव्य संकोचात्मक है, जब कि वंदन पूर्ण द्रव्य संकोचात्मक है। नमस्कार में सभी अंग नहीं झुकते, जबकि वंदन में सर्वांग झुकने चाहिये । नमस्कार और वंदन में बायोपचार देखते हुए इस प्रकार हमें अन्तर लगेगा - यह स्वाभाविक है अतः नमस्कार सामान्य स्वरुप में है जब कि वंदन विशेष स्वरुप में है नमस्कार को बार बार घोंटकर फिर उसमें से वंदन की क्रिया बनाई गई है - अर्थात् ऐसा कह सकते हैं कि नमस्कार में से वंदन में जा सकते हैं । नमस्कार तो अभी प्राथमिक स्तर पर है, जब कि वंदन शिक्षा के अन्तिम वर्ष में है । बच्चे के लिये नमस्कार सरल रहेगा, उसके लिये वंदन कठिन कार्य होगा । इस प्रकार नमस्कार की अपेक्षा वंदन कई प्रकार से बढ़कर माना जाता है, उच्च कोटि का माना जाता है ।
प्रश्न ऐसा होगा कि फिर नवकार महामंत्र में नमो शब्द का प्रयोग क्यों किया है ? यदि नमस्कार की अपेक्षा वंदन कई प्रकार से बढ़कर है, तो फिर वंदन शब्द का ही प्रयोग होना चाहिये था परन्तु ऐसा भी नहीं है । जैसा कि हम पूर्व में ही विचार कर चुके हैं कि नमस्कार और वंदन दोनों ही समानार्थक धातु हैं, समस्वभावी शब्द हैं दोनों ही शब्द समान अर्थ सूचन करते हैं । क्रियात्मकता के कारण दोनों में भेद दिखता है, परन्तु वंदन कई अपेक्षाओं से पीछे रह जाता है । अपेक्षा बदलने पर ख्याल आएगा कि वंदन में क्रिया की प्रधानता है, जब कि नमस्कार में भाव की प्रधानता है । वंदन जब कायिक क्रिया में रहेगा, तब नमो का विनम्र भाव मानसपटल पर रहेगा । नमो भाव आतमि गुण है, जब कि वंदन कायिक क्रियात्मक स्वरुप में अधिक रहेगा । यदि वंदन चलने वाला घोड़ा है, तो नमस्कार उसकी लगाम हाथ में रखकर उस पर बैठा हुआ मालि है । भावनात्मकता
97