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________________ शब्द जोडा है । ‘संकोच' शब्द संकुचन के अर्थ में है, सीमित करने, न्यून मात्रा में वस्तु का उपयोग करने, अनावश्यक वस्तुओं का परित्याग करने, आवश्यक में स्थिर रहने के अर्थ में है । संकोच यहाँ क्षोभ के अर्थ में नहीं है । द्रव्य संकोच में मात्र बाह्य द्रव्यभूत जो काया-शरीर है, उसके अंगो को संकुचित करना द्रव्य संकोच है । हाथ-पाँव आदि जो लम्बे हैं, उनका विस्तार संकुचित करके मोड़ना अंगों का संकुचन है और वही कायिक द्रव्य संकोच नमस्कार है । इसी का अर्थ होगा - हाथ - पाँव मस्तकादि पाँचों ही अंगो को संकुचित कर नमाना, अर्थात् द्रव्य संकोच नमस्कार में शरीर का संकोच हुआ, अंग संकुचित हुए, अंगो का विस्तार संकुचित हुआ अर्थात् द्रव्य नमस्कार हुआ । ___दूसरा भेद भावसंकोच नमस्कार का है । यहाँ भी संकोच का अर्थ यही . रहेगा । शब्दार्थ नहीं बदलता । मात्र द्रव्य के स्थान पर भाव शब्द हैं । भाव शब्द किसी अंग या काया का संकुचन नहीं करता । द्रव्य संकोच शरीर अनुलक्षी है तो भाव संकोच मन अनुलक्षी है । द्रव्य संकोच में दिखाई देने वाले हाथ-पैर आदि बाह्य अंगो का संकुचन संभव है - यह बात तो मानने में आने जैसी है, परन्तु प्रश्न है कि भाव संकोच में किसका संकुचन करोगे? क्यों कि बाह्य अंगादि द्रव्यः नहीं हैं अतः भाव संकोच में मने कों लिया है, मन आभ्यंतर है और साथ ही साथ मन भी शरीर की भाँति पौद्गलिक ही है, तो उस दृष्टि से तो मन की गणना भी भाव संकोच के बजाय द्रव्य संकोच में होगी । तब भाव संकोच में क्या बचेगा ? अतः कहते हैं कि भाव संकोच में आभ्यंतर कक्षा के आत्म स्वरुप में रहे हुए अहंभाव अभिमान, द्वेष, मान कषाय, माया कषाय जन्य कपटवृत्ति आदि जो नमस्कार में बाधक भाववाले कषायों आदि का संकोचन करना होगा । कहने का तात्पर्य दुर्बुद्धि के भावों को बीच से निकालने होंगे, उनका संकुचन करना होगा। इस संकोच से मन में नम्रता, नमो भाव और उसके द्वारा मानस्पटल पर पूज्य भाव नमरकार भाव प्रकट होगा । 'नमो अरिहंताणं' में आगे रखा हुआ 'नमो' शब्द अरिहंत के ऐसे दो प्रकार के नमस्कार करवाता है । द्रव्य संकोच नमस्कार में शरीर के अंग-हाथ-पाँव आदि के संकुचन पूर्वक पंचांग प्रणिपात पूर्वक नमस्कार करवाता है और इसी का भाव संकोच नमस्कार भेद मन की अशुद्धियाँ अभिमान आदि कर्म की प्रकृतियों को दूर करके नमस्कार करवाता है । इस प्रकार दोनों पद्धतिओं के संयुक्त आचरण से शुद्ध कक्षा का नमस्कार होता हैं। इन दोनों में से
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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