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________________ चूडी के आकार की वलयाकार मछलियाँ नहीं होती, बाकी समुद्र में अन्य लाखों प्रकार की मछलियाँ होती है । वे मनुष्याकृति की भी होती है और पद्मासनस्थ जिन प्रतिमा की आकृतिवाली मछलियाँ भी संभव हैं । पुत्र का जीव जिस समुद्र में मछली हुआ, उसने एक दिन उसी समुद्र में अपने सामने जिन प्रतिमा की आकृतिवाली एक मछली देखी । वह तो आश्चर्य चकित हो गया । उसका विस्मयी मन चिन्तन करने लगा । यह क्या होगा ? क्या है? अरे ! ऐसा तो मैंने पूर्व में कहीं देखा है ... हाँ... हाँ ... मुझे पक्का याद है। कुछ भी हो हैं तो पंचेन्द्रिय जीव न ? ख्याल तो आ ही जाता है । इस में भी कर्म के जो संस्कार प्रबल है । अचानक इस चिन्तन में निमित्त मिलते ही उसे जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त हो गया - अर्थात् पूर्व भव की स्मृति मानस पटल पर अंकित हो गई । इस स्मृति पटल पर पूर्व जन्म स्पष्ट दिखाई देने लगा । ओहो... ! अरे ! मेरे पिता ने बहुत बहुत कहा था कि बेटा भगवान को सिर झुकाकर नमन कर, परन्तु मेरा दुर्भाग्य कि मैं नहीं झुका सो नहीं झुका, नमन नहीं किया सो नहीं किया । इस प्रकार अनादर अहंवृत्ति में मैने अपना अमूल्य जन्म बिगाड़ दिया, और आज मैं यहाँ तिर्यंचगति में मछली बना हूँ । अरे.. रे ! यदि वहीं विनम्र बन कर मैंने नमन किया होता तो यहाँ तो नहीं आना पडता । भूतकाल की भूल यदि भविष्य में भी सुधर जाए तो भी लंबा भविष्य कष्टदायी - दुःख दायी नहीं बनता । आज ही सही - समुद्र में देखी हुई जिन प्रतिमा की आकृतिवाली इस मछली को ही आकृति साद्दश्य से भगवान स्वरुप मान कर उसने उसे नमन करना प्रारंभ कर दिया । नमन क्रिया का प्रारम्भ तो जब भी होगा तब लाभ ही होगा, जहाँ कहीं भी होगा वहाँ लाभ ही लाभ होगा । मछली के उस जीव ने अनशन पूर्वक पश्चाताप करते करते स्वकर्मों का क्षय करना शुरु कर दिया और इसके परिणाम स्वरुप वह मृत्यु प्राप्त कर सद्गति में गया । भविष्य में अपना कल्याण साधा जा सकता है। विचार करो । प्रतिमा को परमात्मा नहीं बल्कि पत्थर मानकर नमन न करने वाले, पूजन न करने वाले जीवों की कैसी गति होगी ? उन की भाक्दया ही मन में लानी रही । प्रतिमा तो जिनेश्वर देव की बनाई गई है । शिल्पकार ने पाषाण में से कुरद कुरदकर सुंदर प्रतिमा बनाई है । इसकी अंजनशलाका प्राण प्रतिष्ठा से प्राणारोपण आदि क्रियाँए सम्पादित हुई हैं । कल तक जो पत्थर 86
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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