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________________ सिखाना उचित है ? छोटासा बच्चा है, बच्चे के जीवन में धर्म की शुरूआत करनी है, उसकी माता उसे धर्म सिखाती है, तो सर्व प्रथम बच्चे को क्या सिखाया ? पहले सामायिक या पूजा ? तपश्चर्या या प्रतिक्रमण ? अथवा प्रथम क्षमा, समता या सरलता आदि धर्मों में से कौन से धर्म सिखाए ? बालक की अल्प वय, योग्यता, पात्रता आदि सब का विचार करते हुए लगता है कि 'नमस्कार धर्म' ही सर्व प्रथम सिखाना आवश्यक है। प्रारम्भ में ही बच्चा सामायिक करना अथवा समता में रहना कैसे सीख सकेगा ? अथवा क्या वह तप तपश्चर्या कर सकेगा ? क्या उसे दान-पुण्य करना आएगा ? नहीं, संभव ही नहीं है । सर्व प्रथम बच्चे को नमस्कार धर्म ही सिखाया जाता है । यही प्रचलित व्यवहार है । इसी प्रकार समस्त जगत में चलता है । माता प्रारम्भ में अपने बच्चे को दोनों हाथ जोड़कर सिर झुकाकर नमन कराना सिखाती है । यह नमस्कार की क्रिया है फिर इस क्रिया का नाम 'जे-जे' है - ऐसा साथ में नाम व्यवहार भी सिखाती हैं जिससे हर बार बालक के हाथ पकड़ने और सिर झुकाने की क्रिया माता को करनी न पड़े । फिर यह क्रिया नाम वाची बन जाती है । इस प्रकार बच्चे के ज्ञान में अभिवृद्धि होती है । निश्चित् हो जाता है कि इस प्रकार हाथ जोड़कर सिर झुकाने की क्रिया को 'जे - जे' कहते हैं। अतः 'जे - जे' शब्द का अर्थ क्या होता है - इसे बच्चा कुछ भी नहीं समझता, परन्तु व्यवहार में प्रचलित होने से इसका भाव - इसका अर्थ नमस्कार ही है - इस प्रकार व्यक्ति के जीवन में बाल्यावस्था से ही सर्व प्रथम नमस्कार धर्म के बीज का ही वपन होता है । प्रारंभ से ही नमस्कार धर्म सिखाया जाता है । नमस्कार के ही संस्कार डाले जाते हैं, जिससे बच्चा नम्र, विनीत, विनयी बने - ऐसा माता का भी भाव होता है, और नम्र, विनीत बच्चा सर्व प्रिय, सब का दुलारा, सब का मन हरने वाला बन सकता है । ये ही उत्तम संस्कार भविष्य में सुदृ बनेंगे तो जीवन विनयशील बनेगा, बच्चा बड़ा होकर उदंड, अविनयी न होकर सर्वप्रिय बनेगा - इसी हेतु से क्षमा - समता आदि धर्म शनैः शनैः बाद में सिखाए जाते हैं, परन्तु सर्व प्रथम तो नमस्कार धर्म की ही शिक्षा प्रदान की जाती है और यही उपयुक्त भी है । इस संबंध में एक कथानक इस प्रकार आता है ।
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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