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नमस्कारार्थक 'नमो' का प्रयोग :
इस नमस्कार में नमस्कार भाव की ही प्रधानता है । नमस्कार करने की बात कही गई है, अतः नमस्कार भावसूचक ‘णमो' शब्द आरंभ में रखा गया है । इस नवकार महामंत्र में पदों की संख्या, लघु अक्षर, (गुरुअक्षर) तथा सम्पदाएँ आदि सभी की गणना कर संख्या बताई गई हैं । गणित की दृष्टि से इन सभी की संख्या का अधिक महत्व है । अतः इसमें शब्दों की गणना सीमित है - मर्यादित है, फिर भी इस नवकार मंत्र में देखने से लगेगा कि ‘णमो' शब्द कितनी बार प्रयुक्त हुआ है ? ‘णमो' शब्द पाँचबार प्रयुक्त हुआ है और नमस्कारार्थक शब्द कितने ? तो हम देखते हैं कि नमस्कारर्थक (सूचक) शब्द हैं - पाँच पदों में पाँच बार 'नमो' शब्द प्रयुक्त हुआ है और छठी बार ‘ऐसो, पंच नमुक्कारो' के छठे पद में 'नमुक्कारो शब्द का प्रयोग हुआ है । ये सभी छठी बार नमस्कार के अर्थ में ही प्रयुक्त हुए हैं, परन्तु इस छठ्ठीबार प्रयुक्त शब्दों के अक्षरों की संख्या गिनें तो कुल १४ होती हैं - ‘णमो' - णमो' पाँच बार अर्थात् दस अक्षर हुए और 'नमुक्कारो' शब्द के ४ उनमें जोडने से कुल अक्षर हुए १४ । ६ शब्दों के १४ अक्षर । नमस्कार के अर्थ में इस प्रकार नमस्कारवाची शब्द ६ और अक्षर १४ नवकार महामंत्र में प्रयुक्त हुए हैं ।
जहाँ मंत्र में, शब्द में, शब्द और अक्षरों में, अक्षरों की गणना रखी गई हैं। द्विरुक्ति दोष का सेवन न होना चाहिये - एक शब्द दो, चार बार - बार प्रयुक्त न होना चाहिये, फिर भी नवकार में ‘णमो' शब्द बार बार प्रयुक्त हुआ है, और तब भी इस में किसी प्रकार का दोष नहीं बताया गया हैं, बल्कि गुण ही बताया गया हैं । नमस्कार भाव की वृद्धि, नमस्कार की आराधना, उसका लक्ष्य दर्शाया गया है । जीवन में प्रथम आवश्यकता नमस्कार की है।
सर्व प्रथम नमस्कार धर्म :
जगत में अनेक प्रकार के धर्म हैं । तप-सामायिक, प्रतिक्रमण पौषध, दर्शनपूजन-दान-शील-तप-भावना आदि अनेक प्रकार के धर्म हैं और इसी प्रकार क्षमा, समता, सरलता, निर्लोभता, वैराग्य आदि आत्म धर्म भी अनेक हैं फिर भी इन सब से पूर्व मात्र नमस्कार धर्म की मुख्य आवश्यकता है । सभी प्रकार के धर्मों में नमस्कार धर्म की ही प्राथमिक कक्षा की उपयोगिता है । पहले कौन सा धर्म
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