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________________ नरगइ पणिदि-तस-भव, सन्नि अहक्खाय खड़असम्मत्ते । मुक्खोऽणाहार केवल- दंसण नाणे, न सेसेसु ॥ ४६ ॥ ऊपर जो ६२ मार्गणाएँ दर्शाई गई है उनमें से मोक्ष तत्त्व की सिद्धि किन-किन मार्गणाओं में होती है, उनकी विचारणा करते हुए कहते हैं कि- मोक्ष संबंधी मार्गणा मोक्षविषयक विचारणा की गई है। मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाती, त्रसकाय, भव्यपना, संज्ञिपना, यथाख्यात कक्षा का चारित्र, क्षायिक की कक्षा का सम्यग् दर्शन, अनाहारीपना, केवलदर्शन तथा केवलज्ञान इन १० मार्गणाओं द्वारा ही मोक्ष की विचारणा की जा सकती है । ६२ में से ये १० ही मार्गणाएँ मोक्ष की विचारणा में घटती हैं। शेष ५२ वर्गणाओं में मोक्ष की विचारणा नहीं हो सकती है । I इससे यह सिद्ध होता है कि मोक्ष पाने के लिए क्या-क्या अनिवार्य है । क्या क्या होने से मोक्ष मिल सकता है ? क्या क्या जरूरी है मोक्ष पाने के लिए उसकी गणना में १) मनुष्य गति, पंचेन्द्रियपना आवश्यक ही है । इससे इसके विपरीत अन्य गति जाति से मोक्ष मिलना संभव ही नहीं है । अतः देवगति या तिर्यंच - नरकादि गति में से मोक्ष मिलना संभव ही नहीं है । इसी तरह पंचेन्द्रिय के सिवाय चउरिन्द्रियादि जातियों से मोक्ष मिलता ही नहीं है । सपना, भव्यपना, संज्ञिपना अनिवार्य रूप से सहायक है । अर्थात् इससे विपरीत, त्रस से विपरीत स्थावरपने में भव्य से विपरीत अभव्यपने में, संज्ञिपने से विपरीत असंज्ञिपने में मोक्ष न तो कभी किसी को हुआ है और न ही किसी का कभी होगा । इसी तरह यथाख्यात चारित्र, क्षायिक सम्यक्त्व, अनाहारपना, केवलज्ञान तथा केवलदर्शनादि अन्तिम कक्षा की अनिवार्यता है । इससे विपरीत, ये न हो तो मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है । : इन प्रकार की १० मार्गणाओं में से पहली ५ आवश्यकताएँ प्राथमिक कक्षा की हैं। जबकि शेष ५ प्रकार की आवश्यकताएँ चरम कक्षा की हैं। पहली पाँच आवश्यक जरूर हैं फिर भी उनसे मोक्ष मिले या न भी मिले और जीव कर्मोपार्जन करके अन्य गति में भी जा सकता है । लेकिन शेष ५ प्रकार की आवश्यक मार्गणाएं प्राप्त होने पर मोक्ष निश्चित I I ही होता है । यथाख्यात चारित्र या केवलज्ञानादि के प्राप्त हो जाने पर मोक्ष की प्राप्ति उसी जन्म में अनिवार्य रूप से हो जाती है । अतः अन्तिम ५ प्रकार की आवश्यकताएँ अनिवार्य होती हैं । मोक्ष पाने के लिए। (शेष सभी ५२ प्रकार की मार्गणाओं का भी अभ्यास करके समझना जरूर चाहिए ।) विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति " १४४७
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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