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________________ आकाश के बिना किसी का चलना या रहना आकाश प्रत्येक आधेयभूत पदार्थों के लिए रहने का आधारभूत पदार्थ है । आधार के बिना आधेय पदार्थों का रहना संभव ही नहीं है। अतः बौद्धदर्शन में मोक्ष के अभाव का कारण आत्मा नामक द्रव्य के अस्तित्व का अभाव है । अतः दोनों की विद्यमानता का अभाव माननेवाले वासना रूप कर्म का बंध-मोक्ष कैसे मानते हैं ? कर्म का बंध किसको होता है ? और यदि बंध होता है तो उसका छुटकारा भी तो मानना ही पडेगा । और यदि कर्म (वासना) का छुटकारा होता है तो वह कम-ज्यादा और अन्त में संपूर्ण नाश भी तो होता ही होगा ? यदि कम-ज्यादा कर्म का क्षय मानों और सर्वथा सर्वांशिक - आत्यन्तिक छुटकारा क्यों न मानना ? बस, कर्म का आत्यन्तिक क्षय ही मोक्ष है । इसलिए बौद्ध दर्शन भी यहाँ कसोटी के पाषाण पर खरा नहीं उतर सकता है । नैयायिक दर्शनवादी मोक्ष का अस्तित्व जरूर मानते हैं, लेकिन वह स्वरूप भी पूर्ण शुद्ध सत्य स्वरूप प्रतीत नहीं होता है। “जडा च मुक्ति” कह कर दार्शनिकों ने उनकी भी धज्जियाँ उड़ाई हैं । सांख्यों की मुक्ति मात्र ज्ञानात्मक ही है । बस, ३५ तत्त्वों का पूर्ण बोध उसे ही मोक्ष कह दिया है। कपिलमुनि ने ऐसा मोक्ष स्वरूप बता दिया है । अब वेदान्त में द्वैत, अद्वैत वेदान्त, द्वैताद्वैत वेदान्ती, रामानुज मतवादी, शांकर मतावलम्बी आदि सभी अपने अपने तरीके से मोक्ष को मानते हैं । अतः एक वेद का ही आलम्बन लेकर चलनेवालों में भी मोक्ष के विषय में एकवाक्यता नहीं है । इस्लाम दर्शन ईश्वर प्राधान्यतावादी दर्शन है । अतः उसमें मोक्षादि पदार्थों का अस्तित्व ही नहीं है । आत्मा और मोक्षादि विषयक विचारणा ही नहीं है । आखिर क्यों सोचे वे ? बंधे हुए घोडे के लिए जैसे मात्र... मालिक का ही विचार रहता है वैसे हैं । क्योंकि घोडा मालिक की लगाम से बंधा है। अतः ईश्वर जो अल्ला खुदा है बस, उसकी ही प्राधान्यतावाला दर्शन इस्लाम का है। आत्मा-‍ -मोक्षादि विषयक किसी तत्त्वों की विशेष मीमांसा ही नहीं है तो फिर... उसे दर्शन का दर्जा भी कैसे देना ? फिर भी आंशिक रूप से व्यवहार चलता है । ठीक ऐसा ही ख्रिस्ती दर्शन भी है। एक मात्र ईश्वर पर ही अवलंबित रहकर, ईश्वर को ही केन्द्र में रखकर उसी के चारों तरफ घूमने का प्रयास करनेवाला ख्रिस्ती दर्शन है । ईश्वरोपासना ही सबसे बडी विचारणा है । लेकिन... आत्मा - मोक्षादि किसी की भी कोई विचारणा की ही नहीं है । बस, ईश्वरेच्छा पर छोड दिया है । १४४२ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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