SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ HD हजार, फिर ३ हजार साल इस तरह बदलते काल में कभी भी कोई भी जीवात्मा मोक्ष में जाती रही हो । इसमें सिर्फ काल बदल रहा है परन्तु क्षेत्र नहीं बदलता है। भूमि वही रहती है। तो इस तरह एक ही भूमि-एक ही जगह-जमीन पर से कितनी ही आत्माएँ बदलते काल में मोक्ष में जाती ही रहती हैं । काल बदलता ही रहता है। आत्माएँ भी बदलती ही रहती हैं। लेकिन जमीन-जगह वही रहती है। अब इतने लम्बे काल में, अन्तराल–अन्तराल में जो-जो . आत्माएँ मोक्ष में जाती रहेगी वे सभी ९० के कोन में सीधी दिशा में ऊपर लोकान्त तक ही जाएगी। अब वहाँ पर वे एक ही आकाश प्रदेश के स्थान पर प्रकाश पुंज की तरह स्थिर रहेगी। मिलकर रहेगी। जैसे एक दीपक की ज्योति दूसरे दीपक की ज्योति के साथ मिलकर रहती है। जैसे पानी-पानी के साथ मिल जाता है । अग्नि-अग्नि के साथ मिल जाती है। कहीं कोई भेद नहीं रहता। न ही कहीं कोई सन्धिस्थान दिखाई देता है । न ही कहीं कोई अलगाव । ठीक उसी तरह अनन्तात्माएँ भी एक साथ एक जगह पर मिलकर रहें तो भी कोई भेद नहीं रहता है। जबकि पानी और अग्नि तो पौगलिक देहधारी एकेन्द्रिय जीवों के शरीर विशेष हैं । जीवात्मा तो उस अग्नि और पानी के शरीर में रहती है, और बाहर दृश्यमान शरीर भाग है । फिर भी मिलना-मिश्रित होना संभव है । तो सर्वथा शरीररहित होकर अरूपी-अवर्णीनिरंजन–निराकार गुणधारी आत्मा का परस्पर मिलना कोई आश्चर्य की बडी बात ही नहीं है। १४२४ आध्यात्मिक विकास यात्रा .
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy