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________________ १२ अनुयोग द्वारों से सिद्धस्वरूप की विचारणा 1 ४५ आगम शास्त्रों में “अनुयोग द्वार" सूत्र भी एक महत्वपूर्ण विशिष्ट आगम है I सचमुच तो इसे चाबी - कुंजी रूप आगम कहना चाहिए। जैसे कुंञ्ची से ताला खुलता है ठीक उसी तरह इस आगम से अन्य अनेक आगमों में प्रवेश होता है । अन्य आगमों के पदार्थ खुलते हैं । अनेक दृष्टि से, अनेक नयगत हेतुओं से पदार्थों का विचार किया जाता है । जिससे पदार्थविशेष का विशद वर्णन होता है । ठीक इसी तरह “मोक्ष तत्त्व" की विचारणा १२ द्वारों के जरिए और विस्तृत स्वरूप से की गई है । - वे १२ द्वार इस प्रकार हैं- १) क्षेत्र, २) काल, ३) गति, ४) लिंग, ५) तीर्थ, ६) चारित्र, ७) प्रत्येक बुद्ध बोधित, ८) ज्ञान, ९) अवगाहना, १०) अंतर, ११) संख्या और १२) अल्प बहुत्व आदि १२ द्वार हैं तत्त्वार्थ सूत्रकार ने दशवें अध्ययन में स्पष्ट सूत्र इसी का दिया है कि ... “ क्षेत्र - काल-गति-लिंग-तीर्थ चारित्र - प्रत्येक-बुद्धबोधित - ज्ञानावगाहनान्तर-संख्याल्प-बहु त्वतः साध्याः ॥ १०/७" यद्यपि सिद्धों में इन बारह में से एक भी नहीं घटती है । जैसे ऊपर १५ भेद सिद्ध के बताए हैं उनमें से सिद्ध बन जाने के पश्चात् एक भी भेद नहीं घटता 'है । वे तो सिद्ध बनने की पूर्वावस्था के भेद हैं । इसलिए सिद्ध के १५ भेद कहने के बजाय यदि सिद्ध बनने पहले के १५ प्रकार कहें तो ही ज्यादा स्पष्ट होता है । यद्यपि विस्तार जरूर होता है लेकिन सत्य स्वरूप स्पष्ट होता है । ठीक इसी तरह क्षेत्रादि १२ भी सिद्ध बनने के बाद के नहीं है । क्योंकि सिद्ध बन जाने के पश्चात् तो सभी सिद्धात्माएँ एक समान, एक जैसी ही होती हैं। किसी में भी रत्तीभर भी भेद नहीं होता है । क्योंकि भेदकारक भेद करानेवाला निमित्त जो जड पौगलिक कर्म, और कर्मजन्य शरीरादि कोई साधन - माध्यम बीच में है ही नहीं, फिर भेद होगा ही कहाँ से ? आज भी हमारे इस समूचे संसार में एक से दूसरे के बीच में भेद करता कौन है ? किस के कारण भेद होता है ? बस, सिर्फ इन जड - १ -भौतिक- पौगलिक पदार्थ एवं शरीर ही सबसे बडे भेदकारक हैं । बस, जिस दिन ये सब भेद कारक निमित्त बीच में से निकल जाएंगे उस दिन सच्ची समानता आएगी । उसमें सिद्धों का स्वतंत्र अस्तित्व होते हुए भी एकरूपता - एकता सर्वोच्च कक्षा की आ 1 । अतः सभी सिद्ध समान रूप होते हैं । एक जैसे ही होते हैं । इसलिए सिद्ध बन जाने के पश्चात् ऊपर एक से दूसरे में रत्तीभर भी भेद नहीं है । एक जैसे ही दूसरे होते हैं । अतः ये महावीर स्वामी और ये आदिनाथ या ये तीर्थंकर और ये गणधर, या ये सामान्य साधु और ये आचार्य या ये स्त्री और ये पुरुष आदि के अनेक भेद सिद्ध बनने के पहले यहाँ कर सकते हैं । यहाँ ही होता है । बस, सिद्ध बनने के बाद सिद्धों में एक सिद्ध का दूसरे १४२० आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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