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________________ पूर्ण होते ही मोक्ष में पहुँच गई । इस तरह भ० ऋषभदेव के तीर्थस्थापना करने के पहले ही मरुदेवी माता मोक्ष में चली गई। इसे अतीर्थसिद्ध कहते हैं। जैसा कि-कल्पसूत्र में बताया है "उसभस्सणं अरहओ कोसलियस्स दुविहा अंतगडभूमी हुत्था, तं जहा-जुगंतगडभूमी य परियायंतगडभूमी य, जाव असंखिज्जाओ पुरिसजुगाओ जुगंतगडभूमी, अंतोमुहुत्तपरिआए अंतमकासी ।। २२६ ।। ___कौशलिक श्री ऋषभदेव भगवान के समय में २ प्रकार की अंतःकृद् भूमियाँ हुई थी। १) युगान्तकृत् भूमि, और २) पर्यायान्तकृत् भूमि ऐसी दो प्रकार की भूमियाँ हैं। अन्तगड (अन्तःकृद्) भूमि अर्थात् मोक्षगामी जीवों के लिए मोक्ष में जाने के लिए कालिक मर्यादा दो प्रकार की हुई। १) युगान्तकृद् भूमि.... यहाँ पर युग अर्थात् गुरु-शिष्य-प्रशिष्यादि के क्रमशः होनेवाले पट्टधर पुरुष... ऐसी जो परंपरा चलती रहती है उसके द्वारा प्रमित-मर्यादित जो मोक्षगामिओं को मोक्ष में जाने का काल उसे युगांतकृद्भमि कहते हैं। “जाव असंखिज्जाओ पुरिसजगाओ जुगंतगडभूमि"- जैसे कि- प्रथम तीर्थंकर भगवान के काल में इस प्रकार की युगान्तकृभूमि असंख्य पुरुषों तक रही। अर्थात् ऋषभदेव के शासन में एक के बाद दूसरे फिर तीसरे... इस तरह पट्टपरंपरा में असंख्य युगपुरुषों तक मोक्ष में जाने का मार्ग चालू रहा । असंख्य महापुरुष मोक्ष में जाते रहे । मोक्ष में जानेवालों की परंपरा असंख्य पुरुषों तक चली। ___२) दूसरी पर्यायान्तकृद् भूमि अर्थात् “अंतोमुहूत्तपरियाए अंतमकासी” अर्थात् जिसके केवली पर्याय का काल अभी मात्र अन्तर्मुहूर्त ही हुआ था। अर्थात् केवलज्ञान पाए अभी अन्तर्मुहूर्त मात्र ही काल बीता था। अभी तो देवता आएंगे, समवसरण की रचना करेंगे। चारों तरफ उद्घोषणा करेंगे... उसके बाद हजारों नर-नारी तथा तिर्यंच पशु-पक्षी और देवी-देवता सभी आएंगे.. समवसरण में बैठेंगे, प्रभु भी उसमें बैठकर देशना फरमाएंगे, धर्मतीर्थ-संघ-गणधरादि की स्थापना करेंगे। कोई न कोई जीव धर्म पाएंगे, व्रतादि ग्रहण करेंगे तब जाकर कोई जीव निर्जरादि करके कर्मक्षय करके मोक्ष में जाएगा। भ० तीर्थंकर प्रभु को केवलज्ञान होने के बाद जब प्रभु तीर्थ की स्थापना कर देते हैं उसके बाद से मोक्ष मार्ग प्रारम्भ हो जाता है। ऐसा नियम है । लेकिन भ. ऋषभदेव को १३९८ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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