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________________ पुंसिद्धा गोयमाई, गांगेयाई नपुंसया सिद्धा। . पत्तेय सयंबुद्धा, भणिया करकंडु कविलाई ।। ५८ ॥ तह बुद्ध बोहि गुरुबोहिया य इग समये इग सिद्धाय । इग समयेऽवि अणेगा, सिद्धा तेऽणेग सिद्धा य ।। ५९ ॥ उपरोक्त दृष्टान्तों का दर्शक यह चित्र मोक्षगमन बताता है। AP १ ) जिनसिद्ध-जिस जीव ने पूर्व के तीसरे भव में तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन किया हो और तीर्थंकर नामकर्म केंउदय से तीर्थंकर बनकर समवसरण में बिराजमान होकर, • देशना देकर धर्मतीर्थ की स्थापना करके अन्त में निर्वाण पाकर जो मोक्ष में जाय वे जिनसिद्ध कहलाते हैं। जैसे भ० ऋषभदेव, भ० महावीरस्वामी आदि । EKTM १३९६ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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