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________________ वैसे देखा जाय तो मोक्ष गमन के कोई भिन्न प्रकार होते ही नहीं है । गुणस्थान क्रमारोह के १४ सोपानों पर क्रमशः ऊपर चढते-चढते अन्त में १४ वे गुणस्थान पर आकर सर्वकर्मक्षय करके... शैलेशीकरणादि करके, योगनिरोध करके अन्त में देह छोडकर मोक्ष में जाते हैं। वैसे सभी जाते हैं। इसमें कहीं भेद या अन्तर प्रकार को कोई अवकाश ही नहीं है। फिर भी व्यवहार नय से कुछ भेद जरूर होने हैं । उदाहरण के लिए ..जैसे क्षपक श्रेणी का प्रारम्भ करके गुणस्थानों के सोपानों पर क्रमशः आगे बढते-बढते कोई तो तीर्थंकर बनते हैं, और कोई नहीं भी बनते हैं। इस तरह भेद हो जाते हैं। कोई स्त्रीदेहधारी ही मोक्ष में जाती है और कोई पुरुषदेहधारी मोक्ष में जाते हैं । इस तरह भेद गिने जाते हैं । ये व्यावहारिक बाह्य भेद हैं । परन्तु आन्तर प्रक्रिया गुणस्थान क्रमारोह की सबके लिए राजमार्ग रूप एक ही है । ऐसे १५ प्रकार श्री पनवणासूत्र आगम शास्त्र में ७. वे सूत्र में इस प्रकार दर्शाए हैं जिण-अजिण-तित्थsतित्था-गिहि-अन्न-सलिंग थी नर-नपुंसा। पत्तेय-सयंबुद्धा-बुद्धबोहिय सिद्धणिक्का य ।। ५५ ॥ १) जिन-सिद्ध, २) अजिन, ३) तीर्थ, ४) अतीर्थ, ५) गृहस्थलिंगी, ६) अन्यलिंगी, ७) स्वलिंगी, ८) स्त्रीलिंगी, ९) पुरुषलिंगी, १०) नपुंसकलिंगी, ११) प्रत्येकबुद्ध, १२) स्वयंबुद्ध, १३) बुद्धबोधित १४) एकसिद्ध और १५) अनेक सिद्ध इस प्रकार १५ प्रकार दर्शाए गए हैं। वास्तव में ये कोई सिद्धावस्था आश्रय से भेद नहीं है । ये तो सिद्ध बनने के पहले की अवस्था के भेद हैं। सिद्ध बनने के पहले की अवस्था में कौन कैसा था? क्या थे? अतः उसके आधार पर भेदों की व्यवस्था बैठाई गई है। सिद्ध बनने के पहले कौन किस स्थिति में था? कौन कैसा था? क्या था? इत्यादि अवस्था के आधार पर वर्गीकरण करने से १५ प्रकार निश्चित होते हैं। उपरोक्त इन १५ भेदों में दृष्टान्तरूप से जिनके नामों का निर्देश किया गया है वे नवतत्त्व में इस प्रकार दर्शाए हैं जिण सिद्धा अरिहंता, अजिणसिद्धा य पुंडरिअ पमुहा। गणहारी तित्थ सिद्धा, अतित्थ सिद्धा य मरुदेवा ।। ५६ ।। गिहिलिंग सिद्ध भरहो, वक्कलचिरीय अन्नलिंगम्मि। साहु सलिंग सिद्धा थी सिद्धा चंदणा पमुहा ।। ५७ ॥ विकास का अन्त “सिद्धत्व की प्राप्ति" १३९५
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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