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या प्रभावादि द्वारा किसी को गति कराता भी नहीं है । अतः इसे गतिकारक न कहते हुए गतिसहायक ही कहा है। लेकिन यह धर्मास्तिकाय द्रव्य स्वतः समस्त लोकव्यापी सर्वथा स्थिर स्वरूप में ही है । स्वयं गति नहीं करता है । ठीक ऐसा ही अधर्मास्तिकाय द्रव्य है, यह भी गति नहीं करता है और संपूर्ण लोकव्यापी सर्वथा स्थिर द्रव्य है। यह स्थिति सहायक द्रव्य है । आकाशास्तिकाय समस्त लोक और अलोक उभयव्यापी सर्वथा स्थिर स्थायी द्रव्य है । इसमें कभी गति का सवाल ही खडा नहीं होता है । यह अवकाशदायी स्वभाववाला द्रव्य है।
अब रही बात काल की। वैसे काल का द्रव्यरूप में कोई स्वतंत्र अस्तित्व तो है ही नहीं । अतः गति करने का सवाल ही खडा नहीं होता है । यह तो व्यवहार सहायक द्रव्य है। संसार में नया, पुराना, आज का, पहले का, भविष्य का, भूतकालीन या वर्तमानकालीन आदि व्यवहार काल के आधार पर चलता है। सूर्य-चन्द्र-ग्रह-नक्षत्र-तारादि जो चर ज्योतिषी देवता हैं उनके विमानों की निरंतर गति के आधार पर रात-दिन आदि काल की व्यवस्था चलती है । घडी आदि यन्त्र उसी हिसाब से बने हैं। ___ अतः समस्त संसार में गति करनेवाले, अर्थात् स्वयं स्वाभाविक गतिकारक द्रव्य अर्थात् गति करनेवाले दो ही हैं । एक जीव और दूसरा पुद्गल द्रव्य । पुद्गल में- १) स्कंध, २) देश, ३) प्रदेश, और ४) परमाणु ये चारों स्वरूप है। स्कंध स्थूल है। अतः भार-आकारादि की स्थूलता के कारण उसमें गति की मात्रा कम है। जबकि सूक्ष्मस्वरूपी परमाणु की गति सर्वलोकव्यापी मानी है। यद्यपि पुद्गल में ४ प्रकार हैं, फिर भी ... देश-प्रदेश तो स्कंध से ही जुडे हुए हैं, उनका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। जबकि परमाणु तो स्कंध से अलग होकर स्वतंत्र रूप से अस्तित्व रखता है। अतः दो विभाग ही हो जाते हैं । एक स्कंध और दूसरा परमाणु । हमेशा पुद्गल द्रव्य इन दो स्वरूपों में ही रहता है। स्कंध स्थूल रूप है। भार-आकार विशेषादि से युक्त होने के कारण स्वतः गति की संभावना नहींवत् है। जबकि परमाणु भार-आकारादि रहित होने से उसकी गति-आगतिरूप क्रिया नैसर्गिक रूप से भी संभावित है । जबकि जड-अजीव होने से स्कंधरूप पुद्गल द्रव्य की सहज स्वाभाविक गति न होने से निष्क्रिय द्रव्य है । अतः इसमें क्रिया की प्रेरणा जीव द्वारा संभवती है।
सर्व द्रव्यों में एक मात्र जीव द्रव्य ही सक्रिय है । स्वाभाविक गति करनेवाला द्रव्य है। गति सहायक धर्मास्तिकाय द्रव्य की सहायता लेकर लोकाकाश के प्रदेशोंपर समस्त लोक क्षेत्र में गति करता है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा