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भूतकाल में जितने अनन्त मोक्ष में गए हैं तथा भविष्यकाल में भी जितने मोक्ष में जाएंगे वे सभी एक मात्र नमस्कार महामंत्र के प्रभाव से ही । अर्थात् नमस्कार महामंत्र की जप-ध्यान-साधनादि करके तद्जन्य कृपादि प्राप्त करके ही मोक्ष में गए हैं एवं जाएंगे । नमस्कार महामंत्र में दूसरे पद में “नमो सिद्धाणं” पद से अनंन्त सिद्धों को नमस्कार किया गया है । सिद्ध शब्द एक वचन है जो एक की संख्या का ही वाचक - सूचक है। जबकि
नवकार में प्रयुक्त “सिद्धाणं” शब्द बहुवचन है । अतः इस बहुवचन से एक साथ सिद्धशिला पर बिराजित अनन्त सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार किया गया है। सिद्धशिला पर अनन्तानन्त सिद्ध भगवन्त हैं। क्योंकि काल भी अनन्त बीता है । तथा, संख्या में जीव भी अनन्त मोक्ष में गए हैं उन सभी अनन्त सिद्धों को एक साथ एक छोटे से पद से नमस्कार होता हो तो कितना बडा लाभ होता है । इसीलिए " नमो सिद्धाणं” मन्त्रात्मक पद का जप निरंतर करना चाहिए । इस पद में यदि क्षेत्रवादी "लोए" तथा संख्यावाची.. " सव्व” शब्द और मिला दिया जाय तो " नमो लोए सव्व सिद्धाणं” विस्तृत मंत्र पद बनेगा | अर्थ होगा लोक में अर्थात् लोकाग्र क्षेत्र में या लोकान्त क्षेत्र में सभी = अनन्त सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार करता हूं । इसी तरह इसमें कालवाची (काल - सूचक) एक और शब्द “सया” जोडकर क्षेत्रवाची 'लोए' शब्द जोडकर सिद्धस्तव सूत्र में थोडा अलग से मन्त्र बनाया है - " नमो सया सव्व सिद्धाणं" अर्थ है ... सदा काल सर्व अनन्त सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार हो । या ..... अनन्त - सर्व सिद्ध भगवन्तों को सदा काल नमस्कार हो । इस तरह सिद्धों को नमस्कार करके ही कोई भी संसारी जीवात्मा अपना विकास प्रारंभ कर सकती है ।
कर्मबंधरहित जीव की गति
षड् द्रव्यों एवं पंचास्तिकायात्मक इस संपूर्ण लोक में मात्र जीव और पुद्गल ये दो ही गतिकारक द्रव्य हैं । धर्मास्तिकाय द्रव्य स्वयं गति करता भी नहीं है और अपने दबाव
विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति "
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