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कैसे भरेगा। वह कुछ भी नहीं पा सकेगा। ठीक इसी तरह जो जीव यहाँ अपनी मति, बुद्धि, धारणा, श्रद्धा, उल्टी-विपरीत रखेगा वह क्या पाएगा? कहनेवाले आज भी बहुत घूम रहे है कि मैं तो मोक्ष को मानता ही नहीं हूँ । सिद्धों का अस्तित्व ही नहीं मानता हूँ। तो फिर सिद्धों की अनन्त कृपा का पात्र वह कैसे बनेगा? अरे ! यदि दिल्ली आदि कहीं से आकाशवाणी-विविधभारती आदि से राष्ट्रपति का भाषण आदि हो रहा हो उस समय यदि कोई अपना ट्रान्जिस्टर-रेडियो चालु ही न करे, रिसीवर उठाए ही नहीं तो उसे क्या सुनाई देगा? ठीक उसी तरह मिथ्यात्वी जीवों की हालत होती है । वे जो सिद्धों को या मोक्ष को न माननेवाले हैं वे क्या सिद्धों की कृपा पाएंगे? अतः सम्यग् दर्शन श्रद्धा हमारे मन को Positive विधेयात्मक बनाती है । निषेधपना निकाल देती है । परिणामों की धारा सीधी दिशा में चलती है। विपरीतता या उल्टापन निकल जाता है । अतः श्रद्धालु सम्यग् दर्शन पाने में काफी फायदे-लाभ हैं । आत्मा की विकास यात्रा का अर्थात् ऊपर उठने का मूल बीज सम्यग् दर्शन ही है। प्रथम सोपान यही है। यहीं मोक्ष की दिशा में प्रयाण का आद्यबिन्दु है। .ऐसी कल्याणक भूमियों की यात्रा करने जाते हैं कि जिससे सम्यग् दर्शन प्राप्त हो, और यदि प्राप्त हुआ है तो निर्मल-विमल हो। अरिहंत-सिद्धों की भक्ति हो। दर्शन-पूजा-पाठादि करके उन सिद्धत्मा का जप-ध्यान करने स्थिरासन में बैठ जाना चाहिए । सिद्ध भगवन्तों के साथ एकाकारता, लय लगानी चाहिए। सिद्धों की सीधी कृपा की प्राप्ति की अनुभूति करनी चाहिए। असीम महती बरसती कृपा में स्नान करने से संसारी-सकर्मी जीव भी सिद्धत्व की प्राप्ति की दिशा में आगे प्रगति यथासंभव शीघ्र होती है। जैसे भौतिक जगत् में सौर ऊर्जा की प्राप्ति करके सेंकडों कार्य किये जा सकते हैं। आध्यात्मिक जगत् में सिद्धों की कृपा रूप ऊर्जा को प्राप्त करके अपनी सोलर सेल की बेटरी क्यों नहीं चार्ज की जा सकती है? अर्थात् आसानी से कर सकता है । भूतकाल में जितने भी अनन्त जीव मोक्ष में गए हैं वे सभी सिद्धों का आलंबन, सिद्धों को नमस्कार, सिद्धों की भक्ति, .. सिद्धों का स्मरण, सिद्धों का ध्यान, आदि की क्रिया-प्रवृत्ति करके ही गए हैं। आज भी कोई भी साधक वैसी कक्षा प्राप्त कर सकता है।
जे केई गया मुक्खं, चे केवि य गच्छई मोक्खं। . ते सव्वे चिय इक्क नवकारप्पभावेणैव ।।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा