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________________ आत्माएँ सिद्ध बनी हैं । इसलिए अनन्त आत्माएँ जिस भूमि या क्षेत्र से सिद्ध बनी है ऐसे क्षेत्र को सिद्ध क्षेत्र कहा है। भारत देश में ऐसे सिर्फ दो ही सिद्धक्षेत्र बडे हैं । जिसमें बिहार राज्य में सम्मेतशिखरजी का भी क्षेत्र इसी प्रकार का सिद्धक्षेत्र गिना जाता है। यहाँ से वर्तमान चौबीशी के २० तीर्थंकर भगवान अपने-अपने शिष्य समूह के साथ अनशन-तप-ध्यानादि करके केवलज्ञान पाकर मोक्ष में पधारे हैं । अतः यह क्षेत्र भी सिद्ध भगवन्तों की महिमावाला अतिशय क्षेत्र, तीर्थक्षेत्र या कल्याणक भूमि कहलाता है। ऐसे अन्य तीर्थ- पावापुरी, गिरनारजी, चंपापुरी आदि अनेक तीर्थक्षेत्र हैं जहाँ से अनेक मोक्ष में गए हैं। राजगृही आदि के क्षेत्र कि जहाँ से अनेक गणधर भगवंतादि भी मोक्ष में गए हैं। वैसे मोक्ष में जाने के लिए भारत देश की कोई भी भूमि कोई भी क्षेत्र अनुकूल नहीं है ऐसा नहीं है । कहीं से भी किसी भी भूमि-क्षेत्र से मोक्ष में जा सकते हैं। किसी का भी निषेध नहीं है । फिर भी प्रधान रूप से... इन सिद्धक्षेत्रों की बात की है। सिद्धों की अनन्त कृपा जो आत्मा जिस भूमि-क्षेत्र विशेष से... जहाँ से मोक्ष में जाती है उसी क्षेत्र के ठीक ऊपर उसीकी सीध में स्थिर रहती है। यद्यपि वें देहधारी सशरीरी थे तब जिस भूमिक्षेत्र में रहते थे, विचरते थे, या जहाँ से मोक्ष में गए उन मुक्तात्मा को अपने क्षेत्र का किसी भी प्रकार का कोई मोह-रागादि कुछ भी नहीं है । फिर भी एक मात्र देह छोडकर निर्वाण पाते समय मोक्ष में जाते समय ९० नब्बे अंश का कोन बनाती हुई सीधी ऊर्ध्वगति में ऊपर लोकान्त क्षेत्र में जाती है । फिर वहीं अनन्त काल तक स्थिर रहती है । अतः यहाँ की धरती पर का उनका देह छोड़ने का विशेष क्षेत्र सिद्धक्षेत्र कहलाता है । यही कल्याणक भूमि है। सिद्धों की कृपा का वह क्षेत्र विशेष बनता है । यद्यपि सभी क्षेत्र संपूर्ण १४ राजलोक प्रमाण क्षेत्र सिद्धों की कृपा का ही क्षेत्र है। फिर भी यह विशेष रहता है । प्रभु की कृपा सीधी इस क्षेत्र से प्राप्त होगी। जैसे बादल जहाँ जिस भूमि के ऊपर रहते हैं, जहाँ बरसते हैं, उस भूमि को प्रधान रूप से पानी मिलता है। पानी से वह भूमि विशेष रूप से सींची जाती है। भले ही फिर हवामान के साथ बौछारें इधर-उधर उडती हैं, बरसती हैं। मानसून की असर चारों तरफ होती है, फिर भी प्रधान रूप से बादल के नीचे की भूमि पल्लवित होगी । बादलों की वर्षा की तरह ही अनन्त सिद्ध भगवन्तों की अनन्त-कृपा का पात्र भी उसी के ठीक नीचे रहनेवाला साधना करनेवाला साधक बनेगा। यदि बरसते बादलों के नीचे भी किसी ने अपना पात्र ग्लास-बाल्टी आदि उल्टी रखी तो उसका पात्र विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति" १३८५ .
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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