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________________ है कि आत्मा पर लगे हुए कर्म ही इसमें कारणभूत हैं। जैसे लकडा (काष्ठ) पानी पर तैरने के ही स्वभाववाला है फिर भी उसपर यदि मिट्टी का लेप कर दिया जाय तो वह पानी में डूब जाता है। ठीक उसी तरह कर्म जो कार्मण वर्गणा रूप जड पुद्गल परमाणु है उसका बना हुआ पिण्डरूप कर्म जिसने आत्मा पर भार बढा दिया जिसके परिणाम स्वरूप आत्मा को ऊर्ध्व, अधो, तिर्यग् दिशाओं में भी गमन करना पडता है। जैसे धुंआ ऊपर उठने के स्वभाववाला ही है। क्यों कि उसमें के भार-वजन कारक घटक द्रव्य वहीं जलकर भस्म बनकर नीचे गिर चुके हैं। अतः वजन विहीन अवस्था में वह धुंआ ऊपर उठता है। ऊर्ध्वगमन करने का उसका स्वभाव है। फिर भी मोमबत्ती के प्रयोगविशेष से उसको पुनः नीचे लाया जा सकता है। आता भी है । लेकिन यह कृत्रिम है। वास्तव में ऊर्ध्वगमन ही उसका मूलभूत स्वभाव है। ठीक ऐसी ही हालत आत्मा की है। 225 एक लकडे के बक्से में दो छेद कर चिमनी लगाकर जलती अगरबत्ती एक चिमनी पर रखने से ऊपर जाने के स्वभाववाला धुंआ भी नीचे गमन करेगा। बक्से की पहली चिमनी से होता हुआ नीचे आएगा। क्योंकि अन्दर मोमबत्ती जल रही है। वह अपने जलने के लिए चारों तरफ से वायु मण्डल से हवा खींचती है। वहाँ का आकाश प्रदेश विकास का अन्त सिक्वकी प्राप्ति
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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