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________________ तो कैसी बात है जैसे कि वन्ध्या पुत्र की शादी का अद्भुत वर्णन करना, या खपुष्पों से महल को सजाना या शशशृंग से खुदाई की हुई जमीन पर खेती करके उसके फलों का मधुर भोजन करने जैसी बात है। यदि कोई ऐसा वर्णन करता भी है तो वह कैसा मूर्ख कहलाएगा ? उसकी कल्पना करिए। जब वन्ध्या का पुत्र ही नहीं है तो फिर उसकी शादी रचाने के दिवास्वप्न जैसी बात करनी । या जब ख = आकाश का कोई फूल जब होता ही नहीं है तो फिर उससे महल सजाने की बात कितनी बडी मूर्खताभरी कहलाएगी ? ठीक उसी तरह आत्मा का अस्तित्व ही न माननेवाले के लिए मोक्ष की बात करनी सबसे मूर्खता की बात होगी । इसलिए मोक्ष-मुक्ति मानने का अधिकार उसी को है जो आत्मा के अस्तित्व और स्वरूप को सही शुद्ध अर्थ में मानते हो । अन्यथा कदापि नहीं । मोक्ष का भौगोलिक स्थान अन्त में आत्मा देह छोड़कर जाती है । यह शाश्वत सत्य बिल्कुल सही है । इस प्रकार की वाक्य रचना में " जाना " शब्द है । संस्कृत की "गम्” धातु जाने के अर्थ में प्रयुक्त है । आखिर आत्मा जाती है तो इस प्रकार के वाक्य प्रयोग में “जाना” किस स्थान का सूचक है ? 'जाना' क्रिया में किसी स्थान विशेष का सूचक अभिप्रेत अर्थ है । इसलिए आत्मा अन्त में देह छोडकर जाती है तो कहाँ जाती है ? यह प्रश्न अवश्य उठेगा । कहाँ शब्द भी स्थान का सूचन करता है । ठीक उसी तरह जाना क्रिया भी 1 स्थान का निर्देश करती है। शास्त्र ने उत्तर में स्पष्ट कह दिया कि मोक्ष में जाती है । परन्तु मोक्ष शब्द से स्थानविशेष का स्पष्ट निर्देश नहीं होता है । इसलिए मोक्ष का भौगोलिक स्थान विशेष का निर्देश "लोकान्त" शब्द से किया है। 4. १३६४ Gui अनन्त अलोक के बीच लोक क्षेत्र है । यह मानों बडे गोले के बीच के केन्द्र बिन्दु की तरह प्रतीत होता है । अनन्तगुने अलोक के मध्य केन्द्र में अनन्तवें भाग के छोटे से रूप में है । (इसका चित्रों के साथ वर्णन प्रारम्भ में इसीलिए दिया है कि जिससे कोई भी आध्यात्मिक विकास यात्रा i
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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