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आत्मा
योगनिरोध
योग निग्रह
आत्मा
गुणस्थान हैं- १२ वाँ, १३ वाँ और १४ वाँ । शेष सभी छद्मस्थों के गुणस्थान हैं। याद
रखिए, केवलज्ञानी सर्वज्ञ बनने में आत्म क विकास की प्रक्रिया का अन्त नहीं आ जाता
है। बस, अब अन्तिम एक ही कदम शेष रहता है सिद्ध बनना । मोक्ष में जाकर मुक्त बनना है । मुक्ति की प्राप्ति के बिना पूर्णता नहीं आती, बात अधूरी रहती है। इसलिए अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय, साधु आदि सब का अन्तिम विरामस्थान मुक्ति ही है। मोक्ष प्राप्त करना अनिवार्य ही है । और मुक्ति की प्राप्ति का प्रथम सोपान अयोगी केवली नामक १४ वा गुणस्थान है । तथा संसार की तरफ से देखा जाय तो यह १४ वाँ गुणस्थान अन्तिम सोपान है । मोक्ष में जाने का तो प्रवेशद्वार ही समझिए। सबको इसी द्वार से होकर मोक्ष में जाना पडता है । अयोगी हुए बिना तो कदापि संभव ही नहीं है। 1 अनादि से अनन्त काल तक इन मन-वचन-काया के योगों के गलाम बनकर आत्मा ने अनन्तानन्त कर्म बांधे हैं। अनन्त काल बिताया है। और उसका फल भी काफी भुगता है। परिणामस्वरूप सुख-दुःख भी काफी भुगते हैं। इस तरह इस संसार में योगवश कर्माधीन अवस्था में
अनन्त काल तक आत्मा ने कर्म की थपेडें E खाई हैं। अब आत्मा इन तीनों योगों को ___ अच्छी तरह पहचान चुकी है। ये सब जड
योग हैं । ठीक है, जीव के लिए संसार में रहने
काया।
वचन
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आत्मा
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कर्माश्रव
काया
विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति"
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