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________________ शाश्वतता का सीधा अर्थ है त्रैकालिक स्थिति । तीनों काल में यह मार्ग शाश्वत है । भूतकाल के अनन्त वर्षों में यही मार्ग था । वर्तमान में भी यही मार्ग चालू है । तथा भविष्य के अनन्त काल में जो भी मोक्ष में जाएंगे या जितने भी मोक्ष में जाएंगे वे सभी इसी गुणस्थानों के मार्ग पर से गुजरते हुए ही जाएंगे। दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है । इस तरह काल की दृष्टि से यह शाश्वत मार्ग है। इसी तरह क्षेत्र की अपेक्षासे भी यही मार्ग शाश्वत है। जैसा कि समस्त लोक का स्वरूप पिछले अध्यायों में आप पढ़ चुके हैं-उसमें भौगोलिक स्वरूप का भी संक्षिप्त वर्णन किया है। उसके आधार पर असंख्य द्वीप-समुद्रों के इस लोक के २ ॥ द्वीप के १५ कर्मभूमियों में से जो भी, जब भी मोक्ष में जाएंगे वे चाहे संख्या में अनन्त हो, फिर भी सर्वत्र यही १४ गुणस्थानों के सोपानों का ही यह मोक्षमार्ग शाश्वत मार्ग है। आज भी वर्तमानकाल में पाँचों महाविदेह क्षेत्रों में जहाँ मोक्षमार्ग सदा चालू है वहाँ भी मोक्ष की प्राप्ति इसी मार्ग के क्रम से होती है । इसलिए किसी तीर्थंकर विशेष ने इसको बनाया यह कहना भी अयुक्त होगा। अपितु तीनों काल में शाश्वत मार्ग है। किसी के बनाने की आवश्यकता ही नहीं है । सर्वज्ञ केवली भगवान ने अपने अनन्तज्ञान से जानकर जगत् को बताया है। याद रखिए, बताने और बनाने में आसमान जमीन का अन्तर है। बनाने की प्रक्रिया में क्या बनाना है? कोई जड वस्तु हो तो बनाने की बात आती है। अन्यथा तो बनाना क्या है? यह तो प्रत्येक आत्मा कर्मक्षय करने की इस प्रक्रिया से गुजरती हई जब मोक्ष में जाती है, पहुँचती है तब वह स्वयं ही वैसी बन जाती है । अतः मार्ग गुणस्थानों का वैसा बन जाता है। इसलिए सर्वज्ञ भगवन्तों ने जगत् के हित के लिए यह शाश्वत मार्ग अपने ज्ञानयोग से जानकर बताया है। अतः ऐसे शाश्वत मार्ग की उपासना करनी ही चाहिए। आत्ममार्ग- आखिर यह मार्ग शाश्वत क्यों है? क्योंकि यह आत्ममार्ग है। आत्मगणों का मार्ग होने के कारण ही इसे आध्यात्मिक मार्ग कहते हैं। आत्मा पर लगे कर्मों का क्षय करना और गुणों को प्रगट करना यही इस मार्ग का रहस्य है । अब दोनों में से पहले किसका क्रम बैठाना? क्या पहले कर्मों का क्षय करें ताकि गुण प्रगट हो? या फिर पहले गुणों का प्रगटीकरण करें जिससे कर्मों का क्षय होगा? जी नहीं । सिद्धान्त तो यही है कि जैसे-जैसे कर्मों का क्षय होता जाएगा वैसे वैसे आत्मा के गुण प्रगट होते जाएंगे। लेकिन गुणों के आने के बाद कर्मों का क्षय होगा यह संभव ही नहीं है। इसके लिए साधना का मार्ग यही है कि...जिन पूर्वज महापुरुषों के कर्मों का क्षय हो चुका हो १३३६ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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