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________________ अब छठे समय... मन्थानाकार से भी पुनः निवर्तते हैं । अर्थात् मन्थानरूप प्रसारित आत्मप्रदेशों का संहरण (संकुचन) करके कपाटस्थ बनाते हैं । किवाडाकार (खुल्ले) बनाते हैं। सातवे समय में (प्रथम चित्र की तरह) कपाटाकार आत्मप्रदेशों का भी संहरण करते हैं । अतः दंडस्थाकार आत्मप्रदेशों को व्यवस्थित करते हैं। उसके पश्चात् आठवें समय में दंडाकार से भी अपने आत्मप्रदेशों का संहरण (आकुंचन) करने की क्रिया करके देहस्थ बनते हैं । आत्मप्रदेशों को देहाकार सुस्थित कर देते हैं । अर्थात् पुनः देहरूप में स्थिर हो जाते हैं । इसी प्रक्रिया को पूर्वधर वाचकमुख्यजी महापुरुष इसी तरह फरमाते हैं। इस समुद्घात की प्रक्रिया करने के पहले समय और आठवे समय में केवली. औदारिक काययोगी होते हैं । २, ६ और ७ वे समय में औदारिक मिश्रकाययोगी होते हैं। तथा ३, ४, और ५ वे इन तीन समयों में एक कार्मण काययोगी और अनाहारक होते है समुद्घात किसके लिए अनिवार्य है षणमास्यायुषि शेषे उत्पन्नं येषां केवलज्ञानम्। ते नियमासमुद्घातिनः शेषाः समुद्घाते भक्तव्याः॥१॥ (छम्मासाऊ सेसे, उप्पन्नं जेसि केवलं नाणं। ते नियमा समुग्धाया, सेसा समुग्धाय भइयव्वा ॥१॥) गुणस्थान क्रमारोह के ९४ वे श्लोक में जो बात कही है वही बात सिद्धान्तकार ने भी समान शब्दों में स्पष्ट की है। वे कहते हैं ऐसा समुद्घात सबके लिए करना अनिवार्य नहीं है । सभी करते ही हैं या सबको करना ही पडता है ऐसा नियम नहीं है । जिन केवली का ६ महीना (या कुछ अधिक) आयुष्य शेष हो, या ६ महीना या कुछ अधिक आयुष्य शेष हो और केवलज्ञान पाए हो ऐसे केवली निश्चय ही समुद्घात की क्रिया करते हैं और दूसरे जो ६ महीने के अन्दर के आयुष्यवाले केवली भगवन्त समुद्घात विकल्प से करते हैं । अर्थात् करे या न भी करे । जिनको ३ शेष अघाती कर्मों की स्थिति आयुष्य के समान न हो, ज्यादा हो उनको समान करने के लिए ही समुद्घात करना पडता है । इस तरह यह समुद्घात की प्रक्रिया का वर्णन है। १३३२ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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