________________
१३ वे गुणस्थान के केवली की कर्म प्रकृतियाँ
१३ वे गुणस्थान पर सयोगी केवली, तीर्थंकर केवली, सामान्य केवली, मूक केवली, अन्तःकृत् केवली, समुद्घाती केवली, उपसर्ग सिद्ध केवली आदि अनेक प्रकार हैं । इन सबकी अनन्त चतुष्टयी में कहीं कोई अन्तर या भिन्नता नहीं रहती है । अर्थात् संपूर्ण समानता रहती है । सिर्फ.... तीर्थंकर की तीर्थंकर नामकर्म की उत्कृष्ट पुण्यप्रकृति का उदय ही विशेष रूप से है । बस, इस पुण्यात्मक विशेषता को बाजु में रखकर सभी केवलियों की विचारणा करे तो सब कुछ समानता ही पाई जाती है । किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं रहता है ।
४५ आगम शास्त्रों में ..."अंतगड दशा” नामक आगम शास्त्र में एक अन्तर्मुहूर्त परिमित ४८ मिनिट के सीमित काल में केवलज्ञान पाकर कौन-कौन और कितने मोक्ष में गए? उन महापुरुषों का विशेष वर्णन किया गया है। जो एक अंतर्मुहूर्त = ४८ मिनिट के सीमित काल में जो केवलज्ञान पाकर मोक्ष में चले गए उन्हें अन्तःकृत् (अन्तगड) केवली कहते हैं । तीर्थंकरों को तीर्थंकर केवली तथा तद्व्यतिरिक्तों को सामान्य केवली कहते हैं ।
1
१३ वे गुणस्थान पर बंध, उदय, उदीरणा, सत्ता किन कर्मों की कितनी संख्या में है उनका विवेचन कर्मग्रन्थकार ने किया है — १३ वे गुणस्थान पर ८ कर्मों में से एक मात्र वेदनीय कर्म की १ शाता वेदनीय कर्म प्रकृति का ही बंध होता है । शेष किसी का भी नया बंध नहीं होता है । तथा ४ अघाती कर्मों की ४२ उत्तर प्रकृतियों का उदय होता है । ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय तथा अन्तराय ये ४ घाती कर्म तो उदय में रहते ही नहीं हैं । सर्वथा क्षय हो चुके हैं। अघाती के ४ कर्मों में से आयुष्य की १, गोत्र की १, वेदनीय की शाता तथा अशाता - २, तथा नामकर्म की ३८ इस तरह = ४२ कर्मप्रकृतियाँ उदय में रहती हैं । तथा सयोगी केवली ३८ नाम की तथा १ वेदनीय कर्म की मिलाकर ३९ कर्मप्रकृतियों की उदीरणा भी करते हैं । इस १३ वे गुणस्थान पर्यन्त केवली के आत्मप्रदेशों पर ४ अघाती कर्मों की कुल मिलाकर ८५ प्रकृतियों की सत्ता पडी है । इनमें नाम कर्म की ८० + गोत्र की २, + वेदनीय की २ + आयुष्य की १ = ८५ उत्तर प्रकृतियाँ सत्ता में मौजूद हैं । चिन्ता का विषय नहीं है । पानखर की हवा के एक झोके में सब चली जाएगी । “पंचाशीतिर्जरद्वस्त्रप्रायाः शेषा सयोगिमि ॥ ८२ ॥” पुराने जीर्ण कपडे
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
१३३३