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________________ ७) केवली समुद्घात । इस तरह सात प्रकार के समुद्घात दर्शाए है शास्त्रकार भगवंतो ने । अवसरप्राप्त वर्णन यहाँ पर केवली समुद्घात का है । आखिर केवलज्ञानी भगवान् ऐसा समुद्घात क्यों करते हैं? इसके उत्तर में कहते हैं कि...वेदन करने योग्य नाम, गोत्र और वेदनीय कर्म की स्थिति (अवधि) से यदि आयुष्य कर्म की स्थिति (अवधि) अल्प-कम हो तो उन तीनों कर्मों की स्थिति आयुष्य कर्म के समानान्तर अर्थात् समान करने के लिए समुद्घात करना जरूरी है। इस प्रक्रिया को समुद्घात कहते हैं । केवलज्ञान हो जाने के बाद निश्चित ही उसी भव में मोक्ष प्राप्त होता ही है। अब मोक्ष में जाने के लिए सभी कर्मों का जडमूल से सर्वथा क्षय होना अत्यन्त आवश्यक है। कोई भी कर्म शेष रह जाएगा तो मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी? ४ घाती कर्म तो केवलज्ञान प्राप्त करने के पहले ही क्षय कर दिये हैं। अब रही बात शेष ४ अघाती कर्मों की । इन ४ का सर्वथा जडमूल से क्षय होगा। तभी सदा के लिए मुक्ति होगी । अन्यथा कर्म शेष रह जाने पर पुनः जन्म धारण करना पडेगा। ४ अघाती में आयुष्य कर्म जीवन जीने की काल अवधि का सूचक मात्र है। अतः जब तक आयुष्य कर्म उदय में है वहाँ तक हम जीते हैं... और जैसे ही इसकी समाप्ति हो जाय, उदय समाप्त हो जाय कि तुरंत ही मृत्यु हो जाएगी । अब आयुष्य तो समाप्त हो जाय परन्तु नाम-गोत्र-वेदनीय कर्म की स्थिति काफी ज्यादा होगी तो क्या होगा? इन कर्मों के विपाकों को भुगतने के लिए पुनः जन्म लेना पडेगा। उसी भव में अनिवार्य रूप से मोक्ष में जाना ही जाना है । इसलिए एक भी कर्म को अवशिष्ट रखकर तो काम चलेगा ही नहीं। ऐसे में यदि आयुष्य कर्म से अन्य ३ अघाती नामादि कर्मों की स्थिति ज्यादा हो तो क्या करना? मानों कि आयुष्य कर्म अब सिर्फ ६ महीना ही अवशिष्ट है और नाम-गोत्र-वेदनीय कर्म आदि ४-६ वर्ष के काल की स्थितिवाले अवशिष्ट हो तो क्या करना? बस, ऐसी स्थिति में चारों कर्मों की स्थिति समान करने की प्रक्रिया का नाम “समुद्घात" है । इस प्रक्रिया से नाम-गोत्र वेदनीय इन तीनों कर्मों की ४-६ वर्षों की स्थिति जो आयुष्य से अधिक है उसे काट कर कम करके आयुष्य कर्म के जितनी अर्थात् ६ महीने के माप की करनी ताकि आयुष्य के क्षय के साथ साथ शेष तीनों अघाती कर्मों का भी क्षय हो जाय। और अंश मात्र कर्म भी अवशिष्ट न रहे। तब आत्मा मुक्त होती है। इस प्रक्रिया को यहाँ समुद्घात की प्रक्रिया कही है। समुद्घात करने की प्रक्रिया और समय __ अब समुद्घात करने की प्रक्रिया कैसे की जाती है ? केवली क्या करते हैं? कैसे करते हैं ? इसमें कितना समय लगता है इत्यादि ९० वे श्लोक में तथा आगे बताते हैं। आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना १३२९
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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