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महापाप से बचने के लिए यह हठाग्रह छोडना ही चाहिए और केवली आहार भुक्ति तथा स्त्री मुक्ति अनिवार्यरूप से माननी ही चाहिए। केवली समुद्घात की प्रकिया
चेदायुषः स्थितिथूना, सकाशाद्वेद्यकर्मणः। तदा तत्तुल्यतां कर्तुं समुद्घातं करोत्यसौ ॥ ८९ ।। दंडत्वं च कपाटत्वं मंथानत्वं च पूरणम्।। कुरुते सर्वलोकस्य, चतुर्भिः समयैरसौ॥९० ।। एवमात्मप्रदेशानां प्रसारणविधानतः। कर्मलेशान् समीकृत्योत्क्रमात्तस्मान्निवर्तते ॥९१ ।। समुद्घातस्य तस्याद्ये, चाष्टमे समये मुनिः।
औदारिकांगयोगः स्याद् द्विषट्सप्तमकेषु तु ।। ९२ ।। मिश्रौदारिकयोगी च (स्यात्) , तृतीयाद्येषु तु त्रिषु। । समयेष्वेककर्मांगधरोऽनाहारकच सः ॥ ९३ ।। यः षण्मासाधिकायुष्को, लभते केवलोद्गमम् ।
करोत्यसौ समुद्घातमन्ये कुर्वन्ति वा न वा ।। ८४ ॥ गुणस्थान क्रमारोह ग्रन्थकार महर्षी समुद्घात की प्रक्रिया का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि... यथावस्थित अर्थात् स्वाभाविक रूप से देह में अवस्थित रहे हुए आत्मप्रदेशों को “सम्” अर्थात् “समन्तात्” = सब तरफ से (चारों बाजु से) “उद्घातन" अवस्थित स्वभाव से अन्य स्वभाव में परिणमन करना अर्थात् आत्मप्रदेश जिस व्यवस्था । में सुव्यवस्थित थे उस व्यवस्था को बदलकर दूसरे तरीके से कुछ काल के लिए व्यवस्थित करने की क्रिया को “समुद्घात” कहते हैं। ऐसे समुद्घात ७ प्रकार के होते हैंमणुआणं सत्त समुग्घाया
वेयण-कसाय-मरणे, वेउवि तेय एय आहारे।
केवलियं समुग्धाया, सत्त इमे हुंति सन्नीणं ।। “वेदना-कषाय-मरण-वैक्रिय-तैजसाहारक कैवलिकाः"
मनुष्यों के ७ समुद्घात होते हैं- १) वेदना समुद्घात, २) कषाय समुद्घात, ३) मरण समुद्घात, ४) वैक्रिय समुद्घात, ५) तैजस समुद्घात, ६) आहारक समुद्घात और
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आध्यात्मिक विकास यात्रा