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________________ तीर्थंकर भगवान श्री अरिष्टनेमि का कुल आयुष्य १००० वर्ष का था और ३०० वर्ष कुमारावस्था में घर में बिता कर दीक्षा ग्रहण की। और सिर्फ ५४ दिन में तो केवलज्ञान भी हो गया । इस तरह ७०० वर्ष तक केवली भगवान के रूप में इस अवनीतल को पावन करते हुए विचरे हैं। भगवान आदिनाथ का सर्वज्ञावस्था का काल ... . १ लाख पूर्व में १००० वर्ष न्यून इतना लम्बा रहा है। इस तरह चौबीश ही तीर्थंकर भगवंतों का सर्वज्ञावस्था का काल कई वर्षों का लम्बा - सुदीर्घ दर्शाया गया है। पान नं. १३१८ पर दी गई तालिका से स्पष्ट होगा । १ वर्ष के ३६५ दिन के हिसाब से उन तीर्थंकर भगवन्तों के सर्वज्ञावस्था रूप केवली पर्याय के वर्षों के दिनों का हिसाब लगाइए । भ० महावीर स्वामी के ३० वर्षों के कुल दिन १०९५० दिन हुए । भ० श्री पार्श्वनाथ के ... ७० वर्ष के कुल दिन २५४६६ दिन (८४ दिन छद्मावस्था के कम) इतने दिन तक वे इस अवनितल पर केवली रूप में विचरे । तथा भगवान श्री नेमिनाथ अपने ७०० वर्ष में ५४ दिन कम इनके दिन होंगे २५५४४६ दिन तक केवली पर्याय में विचरे हैं। इस तरह चौबीशों तीर्थंकर भगवंतों के आयुष्य में से गृहस्थाश्रम तथा छद्मस्थावस्था को मिलाकर निकालने से केवली पर्याय के वर्ष आएंगे । उनको ३६५ दिनों के हिसाब से गुणाकार करने पर जो दिन आएंगे वे उनके ... केवली पर्याय के दिन आएंगे । इतने लम्बे दिनों तक वे इसी औदारिक देह में रहकर देशना देते रहे हैं । विचरण इस अवनितल पर करते रहे हैं । तो क्या इतने हजारों-लाखों-करोडों दिनों तक वे सदा उपवासी ही रहे ? आहार- पानी क्या बिल्कुल ही ग्रहण नहीं किया ? तो क्या इस शरीर को ही औदारिक से बढकर वैक्रिय कर दिया या क्या किया ? ऐसा यदि कर सकते थे या हो सकता था तो पहले कभी क्यों नहीं किया ? दीक्षा लेते ही कर देते तो ... कभी भी आहार करने की नौबत ही नहीं आती। क्या वे छद्मस्थ काल में नहीं कर सकते हैं ? और केवली पर्याय के काल में ही ऐसा कर सकते हैं? ऐसा क्यों ? या क्या केवली बनने के बाद ही कोई ऐसी विशिष्ट कक्षा की शक्ति का संचार होता है ? या क्या बात है ? दूसरी तरफ शास्त्रों में कहीं भी केवली बनने के बाद से निर्वाण पाने तक के दीर्घ काल में कभी किसी भी प्रकार का तप किया हो ऐसा भी कोई वर्णन नहीं मिलता है । क्या मासक्षमण किये ? कितने किये ? और क्या क्या तप किये ? कितने उपवास किये ? आदि का कोई वर्णन नहीं मिलता है । लेकिन निर्वाण के समय किस-किस तीर्थंकर भगवान ने कितने उपवास किये यह उल्लेख उनके चरित्रों में मिलता है । भ० महावीर १३२४ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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