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स्तनपान किया कि नहीं ? इन्द्र के आने के समय जब उनके हाथ में ईक्षु थी तब बालस्वरूप भगवान ऋषभदेव ने ईक्षु लेने हेतु हाथ लम्बा किया और इन्द्र ने दिया। इसके आधार पर ईक्ष्वाकु वंश नामकरण हुआ। तो क्या आहार या स्तनपान से ३ ज्ञान को धक्का लगा ? क्या ज्ञान चला गया ? जी नहीं ।
अब दीक्षा लेने के समय अनिवार्य रूप से सभी तीर्थंकर भगवंतों को ४ था मनः पर्यव ज्ञान होता है । अब चतुर्ज्ञानी हो गए हैं परमात्मा । मनोगत भावों को भी जानते हैं । जिनागम शास्त्र में स्पष्ट लिखते हैं कि... दीक्षा के समय तीर्थंकर भगवान जो तप करते हैं, २ उपवास, या ३ उपवास या और भी कम-ज्यादा उपवास सभी करते हैं । तथा उसके पश्चात् उनके पार भी हुए हैं। गृहस्थ श्रावकों ने अन्न-पानी- आहार की भिक्षा उन्हें दी है । पारणे के प्रसंग पर पंच दिव्य प्रगट हुए है । छद्मावस्था में तीर्थंकर स्वयं भिक्षार्थ गए हैं और सर्वज्ञावस्था में तीर्थंकर या केवली अपने शिष्यों के द्वारा लाई हुई भिक्षा ग्रहण करते हैं । सभी तीर्थंकरों के चरित्रों में पारणे करानेवाले श्रावकों के नामों का भी निर्देश है । वह स्पष्ट मिलता है । तथा किस वस्तु से उन्होंने पारणा कराया यह भी नामनिर्देश के साथ मिलता `है । उदाहरणार्थ भ० महावीर स्वामी को परमान्न (खीर) से पारणा कराने के कई बार के प्रसंग लिखे गए हैं। जीरण शेठ जो प्रभु को आहार- पानी की भिक्षा वहोराने की भावना से विनंति करके... अपनी गली आदि सजाकर प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा में भावना से चिन्तन करते घर के बाहरी ओटे पर बैठे हैं । और प्रभु पधारते नहीं है । परन्तु जीरण शेठ के विशुद्ध कक्षा के ऊँचे अध्यवसाय से कितना लाभ हुआ यह दर्शाया है। इस तरह अनेक तीर्थंकर भगवन्तों की भिक्षादि का वर्णन शास्त्रों में स्पष्ट मिलता है ।
सर्वज्ञ बने हुए परमात्मा अपने शिष्यों के द्वारा लाई हुई भिक्षा ग्रहण करते हैं ऐसा वर्णन भी स्पष्ट रूप से उनके चरित्रों में मिलता है ।
२४ तीर्थंकर भगवंतों के जीव में सभी का छद्मस्थावस्था का कालमान लिखा है । तथा उनके केवली पर्याय का कितना काल था वह भी लिखा है । इस तरह केवली पर्याय काल में कितने वर्ष बिताए यह भी स्पष्ट निर्देश मिलता है। जो यहाँ तालिका के कोष्ठक में लिखा है । भ० महावीर स्वामी का कुल आयुष्य ७२ वर्ष का था । ३० वर्ष गृहस्थावस्था बिताए । ४२ वर्ष दीक्षा पर्याय के रहे। इसमें १२ वर्ष प्रभु छद्मस्थावस्था में अर्थात् असर्वज्ञ के रूप में विचरे । और ३० वर्ष केवली पर्याय के रूप में विचरे । भगवान पार्श्वनाथ १०० वर्ष के कुल आयुष्यवाले थे । ३० वर्ष की उम्र में दीक्षा ली। सिर्फ ८४ दिन ही छद्मस्थ रहे और फिर शेष ७० वर्ष तक का आयुष्य सर्वज्ञावस्था में बिताया । २२ वे
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
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