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तीनों काल की अनन्तता तथा द्रव्य से अनन्त द्रव्य और उनके अनन्त गुण तथा अनन्त पर्यायों को इस आत्म पारमार्थिक प्रत्यक्ष केवलज्ञान से जाने जाते हैं। अतः यह अनन्त ज्ञान भी कहलाता है । अनन्त कालीन इसकी सत्ता है । ठीक इसका सहयोगी केवलदर्शन है जो देखने का काम करता है ।
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किस गुणस्थान पर कौनसा ज्ञान
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१ ले मिथ्यात्व के गुणस्थान पर १) मतिज्ञान, २) श्रुतज्ञान तथा ३) विभंगअवधि और अवधिज्ञान होता है । ये ही २ रे, ३ रे, तथा चौथे सम्यक्त्व के गुणस्थान पर भी होते हैं । ४ थे, ५ वे गुणस्थान पर सम्यक्त्वी श्रावक और व्रती श्रावक को मति, श्रुत और अवधि ये ३ ज्ञान होते हैं । ४ थे मनः पर्यवज्ञान का अधिकारी एकमात्र छुट्ठे गुणस्थान का सर्वविरतिधर साधु ही है । ये विशुद्ध कक्षा के होते जाते हैं । सम्यक्त्वी का ज्ञान भी सम्यग्, तथा मिथ्यात्वी जीव का ज्ञान भी मिथ्यात्व रहता है। इसलिए सम्यक्त्वी जीव मिथ्या शास्त्र भी पढे तो उसे सम्यग् रूप में परिणमन होता है और यदि मिथ्यात्वी जीव सम्यग् शास्त्र भी पढे तो उसे मिथ्या रूप में परिणमन होता है। लेकिन गुरुगम से सही यथार्थता का मर्मादि समझ जाए तो मिथ्यात्व छोडकर उसमें से बाहर निकलकर सम्यक्त्व में भी आ सकता है।
श्रावक की कक्षा में आनन्द श्रावक को जैसा कि अवधिज्ञान प्राप्त हुआ था । स्वर्ग के देवी देवता जो कि १ ले से ४ थे गुणस्थान के ही मालिक हैं उसके आगे के गुणस्थान को कदापि स्पर्श कर ही नहीं सकते हैं वे मति, श्रुत और अवधिज्ञान इन ३ ज्ञान के अधिकारी हैं | ४ था और ५ वाँ ये दो ज्ञान समस्त देवलोक के सभी देवी देवताओं को अनन्त भूतकाल में भी कहीं हुआ नहीं था और अनन्त भविष्य में भी कभी होगा ही नहीं । देवलोक, में एक व्यवस्था देवताओं के लिए अच्छी है कि... वहाँ जन्मतः अवधिज्ञान प्राप्त होता है । अतः वे भवप्रत्ययिक अवधिज्ञानवाले कहलाते हैं
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इसी तरह की व्यवस्था नरक गति की सातों नरकपृथ्वियों में है । अतः सातों नरकों में मति-श्रुत तो होते ही हैं । परन्तु साथ में वहाँ अवधिज्ञान, विभंगअवधिज्ञान होता है मिथ्यात्वियों को । वैसे संसार के समस्त जीवमात्र को मति-श्रुत के २ ज्ञान तो अनिवार्य रूप से होते ही हैं। रहते ही हैं। निगोद के सूक्ष्मतम जीव में भी दोनों ज्ञान पडे हैं। भले ही अंशमात्र ही हैं । बडे जीवों में यही मति-श्रुत बढा हुआ रहता है । यहाँ इस पृथ्वी पर मनुष्यों को जन्मजात अवधिज्ञान नहीं होता है । अतः भव प्रत्ययिक नहीं लेकिन गुण
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आध्यात्मिक विकास यात्रा
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