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सहायक नहीं है। क्या कोई भी कह सकते हैं कि... लग्न मंडप की चोरी में हस्तमिलाप की क्रिया में प्रदक्षिणा घूमते हुए केवलज्ञान हो सकता है ? क्या खाते खाते कभी केवलज्ञान संभव भी है ? क्या गन्ने का रस निकालने की तरह यन्त्र में पीले जाते हुए मौत को भेटते समय कभी केवलज्ञान पाना संभव भी है? ऐसे जितने भी प्रसंग-निमित्त जो जो बने हैं उनमें एक में भी केवलज्ञान पाने की संभावना ही नहीं है। ऐसे निमित्त सर्वथा असंभव ही लगते हैं । इन निमित्तों का केवलज्ञान से कोई संबन्ध ही नहीं है । अरे ! उल्टे ये तो प्रतिकूल विपरीत निमित्त हैं।
यह केवलज्ञान प्राप्त करने का राजमार्ग ही नहीं है । यह तो अपवाद मार्ग है । ऐसे अपवादिक मार्गों की कोई स्वप्न में भी इच्छा नहीं कर सकता है। शायद पृथ्वीचन्द्र-गुणसागर के शादी के निमित्त को सुनकर आज कोई सोचे कि... अरे ! मुझे पहले मालूम ही नहीं था वरना मैं भी मेरी शादी के प्रसंग में केवलज्ञान प्राप्त कर लेता। चलो भाई, कोई हरकत नहीं । “बीति ताहि बिसारी दे.. आगे की लीजै शुद्ध" इस नियमानुसार... बीत गया सो भूल जाओ और पुनः लग्न का निमित्त दूसरा बना लो। शादी कहाँ वापिस दुबारा नहीं होती है? क्या दूसरी बार की शादी में भी हस्तमिलाप करके फेरे फिरते समय ध्यान की धारा लग तो जाएगी? केवलज्ञान प्राप्त हो सकेगा? अरे...! लगता ऐसा है कि केवलज्ञान तो क्या संसार का निम्नतम ज्ञान शायद कवलज्ञान भी होना संभव नहीं लगता है। अरे ! भाई साहब ! शादी की लग्न मण्डप की चोरी में हस्तमिलाप के समय के अध्यवसाय भाव कैसे होते हैं ? किन खयालों में खोया हुआ होता है दुल्हा? कैसे स्वप्न संजोता रहता है दुल्हा? बस, पुछिए ही मत । ये ऐसे विचार तो शायद किसी के कहने जैसे भी नहीं होते। फिर कहाँ केवलज्ञान की बात करनी? केवलज्ञान शब्द भी जीभ पर आना संभव नहीं है और विचार भी मन में आना संभव नहीं है । अतः मात्र बातों के बडे बनाने में क्या जाता है ?
करोडों-लाखों वर्षों के इतिहास में यह एक ऐसी घटना हो गई । अनायास हो गई। इसका कोई कारण नहीं मिल सकता कि क्यों हुई? कैसे हुई ? वैसे ही अनेक निमित्तों की बात है । अतः ये निमित्त आज वापिस लेने की विचारणा भी करना हास्यास्पद गणना होगी।
हाँ... यदि किसी को भी केवलज्ञान पाना हो तो आंतर प्रक्रिया की तरफ लक्ष्य जरूर बनाना चाहिए, क्योंकि आंतर प्रक्रिया ध्यानादि की शाश्वत मार्ग है। उसमें अंशमात्र भी अंतर या भेद नहीं हो सकता। यह क्षपक श्रेणी की प्रक्रिया सबसे ज्यादा सरल है।
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
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