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________________ शिरच्छेद होते समय भी केवलज्ञान ३२ राजकन्याओं के साथ शादी करके विषयसुख में स्वर्गसुख की तरह मश्गुल मदन ब्रह्म राजकुमार एक दिन इन्द्रोत्सव में गया। वहाँ से उद्यान में ज्ञानी-ध्यानी मुनि की देशना सुनने परिवार सहित बैठा । धर्मोपदेश से राजकुमार की सुषुप्त आत्मा जागृत हो गई । बस, संसार से विरक्त होकर नववधुओं का त्याग करके चारित्र अंगीकार करके साधु बन गए । गुरुदेव के साथ विचरते हुए ज्ञानादि में विद्वान बने । एक बार खंभात की तरफ विहार करके आए । एक घर में गोचरी के लिए गए। उस घर में रहती श्रीमती स्त्री ने रूप सौंदर्य से युक्त बलिष्ठ मुनि के यौवन को देखकर पतिवियोग के कारण कामज्वर से पीडित होने के कारण मनि को भोगसमर्थ-सक्षम जानकर घर के द्वार बंद करके अपने साथ सुख भोग भोगने के लिए मनाने लगी। अपने हाव-भाव से मुनि को पतित करनेवाली उस शेठानी को यह पता नहीं है कि उससे भी अच्छे रूप-सौंदर्यवाली ३२ राजकन्याओं को छोड़कर आए हैं । ये विरक्त-त्यागी क्या भोगों में लिप्त होंगे? इतने में उस शेठानी ने मुनि को कस कर पकड ही लिया। उसकी तीव्र वासना के सामने मुनि का उपदेश निरर्थक गया और अवसर के सजग मुनि ने भागने की कोशीश की तो कामकुशल उस शेठानी ने पैरों में आंटी डालकर महाराज को गिरा दिया और अपने पैर में पहनने का गहना झांझर महाराज के पैरों में पहना दिया । महाराज भागने लगे तो चिल्लाने लगी-देखो ..देखो? ये महाराज मेरा चारित्र भ्रष्ट करके भाग रहे हैं । इसका सबूत यह है कि मेरे पैर का आभूषण उनके पैरों में है । गली के लोगों ने महाराज को पकडकर खूब मारा-पीटा। राजा ने बीच में आकर सबको कहा कि... ठहरो ! मैंने इस स्त्री का नाटक देखा है । यही ऐसी चरित्रभ्रष्ट है । इसी ने यह स्त्री स्वभाव सुलभ मायावी नाटक रचा है । अतः राजा ने उस स्त्री को देशनिकाल की सजा देकर सीमा पार निकाल दी । मदनब्रह्म नाम होते हुए भी मुनि महात्मा की लोक प्रसिद्धि “झांझरिया मुनि" के नाम से हुई। पैरों में आए झांझर के कारण। मनि विहार करते हए उज्जैनी नगरी पधारे । भिक्षार्थ निकले मुनि को देखकर राजमहल के झरोखे में बैठे रानी ने देख और अचानक भावोद्रेकवश रोना आया। राजा ने सोचा, कुछ दाल में काला लगता है। अतः रानी का प्रेमी यार मान कर गुप्त रूप से सेवकों को आज्ञा करके जमीन में गहरा खड्डा करके उसमें डालने के लिए कहा। और तलवार से गर्दन काटकर सिर गिराने के लिए कहा। आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना १२८१
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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