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________________ मुनिमहात्मा उसमें रहे भी कैसे?... बस, देह को छोडकर सीधे मोक्ष में पहुँच गए । नमो ... नमो... खंधक महामुनि... । समता के भंडार को शत शत नमन ! इधर खून से लथपथ मुनि के ओघा-मुहपत्ति को चील चाँच में ले उडी और जाकर राजमहल पर गिरा दिये । रानी ने मांस पिण्ड समझा लेकिन गौर से देखकर अपने भाई मुनि का रजोहरण पहचान कर सिर पीटकर रोने लगी... तब राजा को सच्चाई का पता चला। अब क्या करें? पश्चाताप के भाव में राजा-रानी ने संसार छोडा, दीक्षा ली। प्रायश्चित्त के रूप में तपश्चर्या करके मुनि हत्या को अपना पाप धोकर कर्मक्षय कर शिवसुख प्राप्त किया। ४९९ का मोक्षगमन- २० वे तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान के पास स्कंदक ने ५०० मनुष्यों के साथ आर्हत् दीक्षा ग्रहण की । ४९९ सब स्कंदक के शिष्य बने । एक दिन अपने पूर्वाश्रमी बहन-बहनोई को प्रतिबोधित करने के लिए... प्रभु से आज्ञा माँगकर गए । प्रभु ने कहा, भारी उपसर्ग होगा। फिर भी स्कंदक मुनि ने पूछा, हम उस उपसर्ग में आराधक बनेंगे या विराधक? प्रभुने कहा तुम्हारे सिवाय सभी आराधक बनेंगे । स्कंधक आचार्य बने थे। उन्होंने सोचा, चलो मेरे एक के निमित्त भी ४९९ का भी कल्याण होता हो तो अच्छा है । गए। कुंभकार नगरी के बाहर उद्यान में स्थिरता की। वैमनस्य भाव से पालक मंत्री ने राजा के कान फूंके कि ये ५०० सुभट आपको मारने के लिए षड्यन्त्र रच रहे हैं । तीक्ष्ण हथियार रच रहे हैं और जमीन में छिपाए हैं। राजा ने पालक मंत्री को आदेश दिया कि... तुझे इसके लिए जो उचित लगे वह सजा कर देना, इसके लिए मैं तूझे सत्ता देता हूँ । राजा के कहते ही पालक की तो पूरी इच्छा थी ही। वह तो वैमनस्य भाव से दुश्मन की तरह लपकना चाहता था। ___ पापी पालक ने नगर के बाहर तेल निकालने की घाणी के यन्त्रों की तैयारी की। सभी साधुओं को साफ कह दिया कि आप अभी सभी तैयार हो जाओ। तिल के तैल की तरह इस तैल यन्त्र में आपका सबका तेल निकाला जाएगा। साधु कभी मृत्यु से डरते नहीं हैं । वे सदा ही मरणान्त उपसर्ग के लिए तैयार रहते हैं। प्रमुख आचार्य श्री स्कंदक ने सभी में प्राणवायु के संचार की तरह अपनी प्रभावी वाणी से सब में उत्साह का जोश भर दिया। मानों युद्ध के मैदान में रणभेरी-युद्ध का ब्युगल बजा हो इस तरह सभी मरने के लिए सज्ज हो गए । मौत की किसी को परवाह ही नहीं थी। ४९९ साधुओं को आचार्यश्री ने आत्मचिन्तन कराया। देहममत्व का त्याग १२७६ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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