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________________ पाया यह देखने से केवलज्ञान की प्राप्ति की सरलता का ख्याल आएगा। तथा चंदनबाला और मृगावती जैसी साध्वीजियों ने कैसे केवलज्ञान पाया यह दृश्य इतना सरल लगता है जिसकी कोई कल्पना ही नहीं कर सकते हैं। प्रसन्नचंद्र राजर्षि के अध्यवसायों का चढाव-उतार भी देखने से मनःस्थिति का ख्याल आएगा और अन्त में कितनी आसानी से केवलज्ञान पा लेते हैं । यह समझना ही चाहिए । अइमत्ता मुनि जैसे बाल साधु ने मात्र इरियावही प्रतिक्रमते-क्रमते कितना जल्दी केवलज्ञान पा लिया यह देखने से तो हमारा भी मन ललचा जाएगा। कुरगडु जैसे तपस्वी मुनि का जीवन तथा उनकी गोचरी का वर्णन सुनते ही उनको कैसे केवलज्ञान हुआ यह दृश्य अनोखा अद्भुत है। और परम गुरु गौतमस्वामी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ यह दृश्य तो इतिहास में अमर बन गया। आज दिन तक इस तरह किसी ने केवलज्ञान प्राप्त किया हो, ऐसा लगता नहीं है। खंधक मुनि का दृष्टान्त भी अनुकरणीय लगता है। चरित्र ग्रन्थों में ऐसे अनेक महात्माओं के आदर्श चरित्र सुवर्णाक्षर से लिखे गए हैं । वे अमर हैं । इतिहास भविष्य में भी जब-जब लिखा जाएगा तब तब केवलज्ञान पानेवाले ऐसे सेंकडों महात्माओं का चरित्र सर्वप्रथम लिखा जाएगा। यहाँ पर ऐसे केवलज्ञान पानेवाले महापुरुषों के चरित्रों का आलेखन करने के लिए मन काफी ललचा रहा है लेकिन ग्रन्थविस्तार के भय से पुनः मन पर लगाम खींचनी पडती है । यद्यपि यह तो एक स्वतंत्र ग्रन्थ का विषय है। स्वतंत्र रूप से ग्रन्थ लिखा जाय तो ही सभी चरित्र नायकों को न्याय दिया जा सकता है । तथा श्रोताओं को भी कथानुयोग के विषय में विशेष रस आएगा। तथा सिद्धान्त के साथ दृष्टान्त से प्रक्रिया भी समझ में आएगी । यहाँ पूरी कथा न देकर भी मात्र कैवल्य प्राप्ति का कुछ अंश संक्षेप में जरूर देता हूँ । जिससे ख्याल आएगा । भावों की जागृति होगी और हम अन्दर ही अन्दर में नतमस्तक हो जाएंगे। १) मेतारज मुनि- मेतार्य श्रेष्ठी ने परमात्मा महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की, तपश्चर्या भी उग्र शुरू की। पारणे में एक सोनी के घर गोचरी गए। सोनी रसोईघर में आहार-पानी का दान कर रहे थे कि एक पक्षी आकर सोनी के टेबल पर से सोने के जौ खाकर चला गया। मुनि के जाने के पश्चात् सोनी हे सोने के जौ न देखकर मुनि पर शंका की । वह दौडकर पीछे गया... और मुनि को चोर समझकर सजा करने के अधम इरादे से गीले चमडे के पट्टे मुनि के सिर पर कसकर बाँधे । तेज धूप में सूखतें चमडे के पट्टों से मुनि के सिर की नसें टूटने लगी, चमडी फटने लगी। तीव्र अशाता में भी मुनि समता १२७० आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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