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________________ भाव से तल्लीन रहकर ध्यान की धारा में चढते हैं । क्षपक श्रेणी पर आरूढ होकर १३ वे गुणस्थान पर पधारते हुए केवलज्ञान पाकर केवली बनते हैं । धन्य वे महात्मा। २) अरणिक मुनि- बाल्य वय में ही दीक्षा लेनेवाले अरणिक मुनि यौवन वय में किसी संदरी में मोहित होकर चारित्र का त्याग कर पुनः संसारी बनकर सुख-भोग भोगने लगे । आखिर माता साध्वीने पुनः उसे प्रतिबोध किया और अरणिक ने पुनः साधुत्व स्वीकारा, बस, अनशन करके तेज धूप में तवे की तरह तपी हुई शिला पर संथारा करते हैं । बस, प्राण त्यागने का ही लक्ष्य था। फिर भी ध्यान की तीव्र साधना में...घाती कर्मों का क्षय होते ही केवलज्ञान की प्राप्ति होती है । और मोक्ष में पधारते हैं। ३) अइमुत्ता मुनि- राजगृही नगरी में गोचरी गए हुए गौतमस्वामी गणधर भगवान की अंगुली पकडकर साथ आनेवाला रास्ते पर खेलता हुआ एक छोटा बालक उनके साथ-साथ जाता है और समवसरण में आकर श्री वीर प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण कर साधु बनता है । जी हाँ, ... साधु तो बन गया लेकिन बाल स्वभाव के कारण बचपन की नादानीयता के कारण दूसरे बच्चों के साथ पानी में खेलने बैठ गए। दूसरे बच्चे कागद की नौका बना कर पानी में तैराकर नाचते थे। तो बालमुनि ने अपने काष्ठ पात्र तिरपनी को तैराने पानी में रख दी और खुशी में नाचने लगे । बाल स्वाभाव से भूल गए कि साधु जीवन में कच्चे पानी की विराधना नहीं करनी चाहिए। यह ख्याल आते ही वे शरमिंदे हो गए । समवसरण में आए, गुरु आदेश से इर्थापथिकी क्रिया कर रहे थे, कि सूत्र में वे शब्द "दग-मट्टी" आदि के आते ही ध्यान की धारा शुरु हो गई । अध्यवसायों की विशुद्धि की तीव्रता में क्षपक श्रेणी पर आरूढ हो गए और चारों घाती कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान बचपन की बालवय में ही प्राप्त करलिया। वाह !ऐसे छोटे बालक भी केवलज्ञान पा गए। __ ब्राह्मणपुत्र कपिल केवली-कौशांबी नगरी में काश्यप ब्राह्मण पंडित का पुत्र था कपिल । पिता की मृत्यु के पश्चात् पुत्र कपिल को माता ने पढने के लिए काशी भेजा। इन्द्रदत्त पंडित कपिल को पढाने लगे। एक ब्राह्मणी के घर कपिल भोजन करने जाता था। यौवन की देहली पर पैर रखते ही भोजन करानेवाली दासी के प्रेम में पडा । अब विद्योपार्जन करना भूल कर दासी के प्रेम में पागल बना हुआ अपना संसार बसाने के स्वप्ने संजोने लगा। आखिर शादी कर ली। अब पैसे के लिए प्रभात में राजा को श्लोक बोलकर उठाने गया। वहाँ चोर के रूप में पकडा गया। प्रातः राजा के सामने उपस्थित किया गया। राजा ने कपिल की सरलता और सच्चाई पर प्रसन्न होकर धन मांगने के लिए कहा। कपिल ने आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना १२७१
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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