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________________ I वे अवश्य पधारेंगे । यहाँ से ही मोक्ष में जा सकेंगे। इसके सिवाय मोक्ष में जाना किसी के लिए भी संभव ही नहीं है । १३ वाँ गुणस्थान तो मोक्ष में जानेवाले सभी साधकों के लिए अनिवार्य है । लेकिन मोक्ष में जानेवाले सभी जीवों के लिए तीर्थंकर नामकर्म या तीर्थंकर भगवान बनकर ही मोक्ष में जाना अनिवार्य नहीं है । यह तो अपनी अपनी इच्छा पर निर्भर करता है । जैसी जिसकी इच्छा । तीर्थंकर बनकर मोक्ष में जाना हो तो भी आपकी इच्छा या फिर बिना तीर्थंकर बने ही यदि मोक्ष में जाना हो तो भी जीव की अपनी इच्छा । गणधर बनकर जाना चाहो तो भी बन सकते हो और आचार्य पद से सीधे सिद्ध बनना चाहो तो भी जा सकते हैं । इसी तरह यदि उपाध्याय पद से जाना हो तो भी संभव है । और साधु बन कर ही मोक्ष में गए हुए अनन्त हैं। साधु हो या साध्वीजी दोनों पंचम पद से मोक्ष में जाते हैं । केवलज्ञान पानेवाले अनेक महात्मा अब रही बात कुछ श्रावक-श्राविका की ... जिन्होंने ४ थे गुणस्थान से ही भाव की कक्षा में श्रेणी प्रारम्भ कर दी और अन्दर ही अन्दर. भावों में परिवर्तन होता जाता है। और एक से एक गुणस्थानक बदलते ही जाते हैं । वे महान आत्माएँ ४ थे गुणस्थान से भी भावों की उत्कृष्टता में अध्यवसायों की शुद्धि और प्रबलतर तीव्रता के साथ गुणस्थान बदलते ही जाते हैं और आत्मा ऊपर ही ऊपर चढती ही जाती है । जहाँ एक-एक गुणस्थान उत्कृष्ट मुहूर्त या हजारों वर्षों का भी काल हो लेकिन कोई साधक अध्यवसायों की उत्कृष्टता के आधार पर ४ थे गुणस्थान से १३ वे गुणस्थान तक पहुँचने में सिर्फ १ अन्तर्मुहूर्त का ही समय लेकर केवली भी बन जाता है । ऐसे भी महात्मा अनेक हैं । भूतकाल में हुए ऐसे अनेक उदाहरण इतिहास में सुवर्णाक्षर से लिखे गए हैं। जिनमें मरुदेवी माता का नाम, भरत चक्रवर्ती का नाम, कपिल केवली का नाम, पृथ्वीचन्द्र और गुणसागर जैसे गृहस्थी महात्मा का दृष्टान्त तो सचमुच ही विश्व के इतिहास में एक अजोड है । साधु बने हुए जो छट्ठे गुणस्थान से सीधे ही आगे बढते हैं और १३ वे गुणस्थान पर पहुँचकर ही रुकते हैं उनमें ... गजसुकुमाल मुनि, मेतारज मुनि, ढंढण ऋषि, खंधक आचार्य और उनके ५०० शिष्यों ने भी जिस तरह केवलज्ञान पाया यह भी विश्व के इतिहास में आश्चर्यकारी दृष्टान्तों में प्रथम कक्षा का है । इलाची कुमार जैसे नृत्यकार का दृष्टान्त भी अनोखा है । दृढप्रहारी जैसे हत्यारे ने भी कैसे केवलज्ञान पाया यह दृष्टान्त अवश्य ही पठनीय है। चंडरुद्राचार्य और उनके शिष्य दोनों गुरु-शिष्य ने किस तरह केवलज्ञान आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना १२६९
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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