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________________ अरिहंत गणधर १२६८ १३ वा गुण. आचार्य गणधर बननेवाले सभी अनिवार्य रूप से १३ वे गुणस्थान पर आकर केवलज्ञानी बनकर ही मोक्ष में जाएंगे । गणधर अनिवार्य रूप से मोक्षगामी ही होते हैं । इसलिए वे अवश्य ही उसी भव में मोक्ष में जाएंगे । इसलिए १३ वे गुणस्थान पर उपाध्याय कर्मों का सर्वथा क्षय करती हुई १३ वे गुणस्थान पर पहुँचती है। जो केवलज्ञानादि अनन्त चतुष्टयी गुणों को प्राप्त करती है । आखिर १३ वे गुणस्थान पहुँचने पर सबको केवलज्ञानादि सभी गुण सरीखे ही प्राप्त होंगे। लेकिन जिसमें पहले से पूर्व के तीसरे जन्म से तीर्थंकर नामकर्म का रसोदय होता है और परिणाम स्वरूप इस विशिष्ट कक्षा की पुण्य प्रकृति के अतिरिक्त उदय के कारण वह आत्मा परमात्मा बनती है। तीर्थंकर भगवान के रूप में पहचानी जाती है । लेकिन मानों की इस प्रकार की तीर्थंकर नामकर्म की पुण्यप्रकृति न भी उपार्जित की हो, फिर भी अन्य आत्माएँ इस सोपान पर पहुँच सकती हैं । १३ वे 1 1 स्थानका तीर्थंकर नामकर्म के साथ कोई ऐसा अविनाभाव या अनिवार्य संबंध नहीं है कि अनिवार्य रूप से १३ वे गुणस्थान पर आनेवाला तीर्थंकर ही हो, अन्य नहीं । नहीं, ऐसी कोई बात ही नहीं है । कोई भी आ सकता है। कोई भी केवली बन सकता है। तीर्थंकर बननेवाली आत्मा हो या न बननेवाली कोई भी सामान्य आत्मा हो... जो भी क्षपक श्रेणी का प्रारम्भ करे वह चढे... न करें वे नहीं । साधु श्रावक श्राविका आध्यात्मिक विकास यात्रा साधु सिद्ध श्राविका श्रावक अरिहंत साध्वी उपाध्याय गणधर आचार्य
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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