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________________ क्षपक श्रेणी तीर्थंकर नाम कर्म की प्रकृति का उपार्जन करना चारों घाती कर्म के क्षय से एवं तीर्थंकर नाम कर्म के उदय के कारण तीर्थंकर भगवान बनना । श्रीण मोह उपशांत मोहे अपूर्वकरण मोहनीय का संपूर्ण क्षय करके वीतराग बनना प्रमत्तसंयत देशविरत अविरत मिश्र सास्वादन मिथ्यात्व मोक्ष मार्ग का आचरण एवं इस पर आरोहण सबके लिए अनिवार्य है । यही एक मात्र उपादेय हैं। सभी जीवों के लिए आगे बढने के लिए इसी मार्ग पर आरूढ होना है । कोई तीर्थंकर नामकर्म बांधे या न भी बांधे । यदि यह बांधेगा तो ही तीर्थंकर भगवान बनेगा और यदि नहीं बांधेगा तो तीर्थंकर भगवान नहीं बन पाएगा। शेष सब प्रकार की उपलब्धि तीर्थंकर जैसी ही समान रूप से पाएगा। जिसमें चारों घाती कर्मों का क्षय तीर्थंकर का तथा अन्य सभी जीवों का १३ वे गुणस्थान पर समान रूप से होता है । और इसमें क्षय से उपलब्धि भी समान रूप से सबको होती ही है । जिसमें वीतरागता, सर्वज्ञता (केवलज्ञान), सर्वदर्शिता (केवलदर्शन) तथा अनन्तवीर्यता ये ४ हैं । जो सबको समान रूप से प्राप्त होते है । I याद रखिए, वीतरागता - सर्वज्ञतादि की प्राप्ति घातकर्मों के क्षय से होती है। जबकि तीर्थंकरत्व की प्राप्ति किसी कर्म क्षय से नहीं होती है । क्योंकि तीर्थंकर नामकर्म की इस प्रकृति की गणना चारों घाती कर्मों में से किसी में भी नहीं होती है । यदि यह घाती कर्म की प्रकृति होती तो यह भी उसी के साथ ही कब की क्षय हो चुकी होती । लेकिन वैसा नहीं हुआ । शेष ४ अघाती कर्मों में जो १) नाम, २) गोत्र, ३) वेदनीय और ४) आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना १२३७
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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