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सिद्धावस्था में सिद्धों को क्षायिक तथा पारिणामिक ये दो ही भाव रहते हैं । पारिणामिक भाव के आधार पर जीवत्व - चेतनत्व - भव्यत्व - नित्यत्व, अस्तित्व आदि सदा काल रहते ही हैं । तथा... . केवलज्ञानादि नौं गुण यहाँ चारों घाती कर्मों का क्षय करके साथ ले जा रहा है वे वहाँ सदा रहते हैं । इस तरह १४ गुणस्थानों में कहाँ किस गुणस्थान पर जीव किन-किन कितने भाववाले कैसा होता है यह दर्शाया है ।
१३ वे गुणस्थान के अधिकारी
श्रावक
→ श्राविका
सामान्य साधु-साध्वी
अरिहंत
१२३२
१२
+
१३
क्षीण मोह
१४
सिद्ध
आध्यात्मिक विकास यात्रा
4 अयोगी
केवली
१०
उपशम श्रेणीवाला साधक तो ज्यादा से ज्यादा ११ वे गुणस्थान तक ही आता है । बस, उससे आगे बढता ही नहीं है । वह ११ वे से ही नीचे गिर कर वापिस चला जाता है । क्षपक श्रेणीवाला जीव ही १० वे गुणस्थान से सीधा १२ वे गुणस्थान पर आता है
1
I
सयोगी
केवली
१२ वे गुणस्थान की स्थिति के अनुसार सभी समान गुण धारक वीतरागी होते हैं । अध्यवसाय धारा समान श्रेष्ठ होती है । इसके पश्चात् १ मोह क्षय के बाद २ ज्ञानावरणीय, २ दर्शनावरणीय, तथा ४ अन्तराय इन चारों घाती कर्मों का क्षय करके जीव १३ वे गुणस्थान सयोगी केवली पर पहुँच कर केवलज्ञानी बनता है । यहाँ आनेवालों में मुख्य अधिकारी १) अरिहंत बननेवाला तीर्थंकर का जीव, २) गणधर का जीव, ३) आचार्य ४) उपाध्याय, ५) मुनि - साधु का जीव, ६) साध्वीजी, ७) कोई श्रावक विशेष और ८) कोई स्त्रीविशेष श्राविका ये सभी १३ वे गुणस्थान पर आरूढ होने के अधिकारी हैं ।