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________________ इस तरह पाँचों भावों से जो जो प्रगट होता है उसका स्वरूप-संक्षेप में यहाँ दर्शाया है। १४ गुणस्थानों में ५ भाव सम्माइ चउसु तिय चउ-उवसममुवसंतयाण चउ पंच। चउ खीण अपुव्वाणं तिनि उ भावावसेसाणं ॥ ६४॥ श्री पंचसंग्रह सूत्रकार महर्षि ने ६४ वे श्लोक में १४ गुणस्थानों पर कहाँ कौनसा जीव किस किस भाव का धारक होता है ? उसका स्पष्ट चित्रण किया है। ४,५,६ और ७ इन चार गुणस्थानवी जीवों में ३ अथवा ४ दोनों प्रकार के भाव होते हैं । ३ भाव में १ औदयिक, २ क्षायोपशमिक और ३ पारिणामिक ये ३ भाव होते हैं । साधक जीव विशेष यदि क्षायिक सम्यक्त्वादि प्राप्त कर ले तो क्षायिक अथवा औपशमिक भाव चौथा साथ में मिलने पर ४ भाव भी होते हैं। मनुष्य गति, कषाय, वेद, आहारकत्व, अविरतित्व, लेश्यादि औदयिक भाव के होते हैं। भव्यत्व-जीवत्व पारिणामिक भाव का, मतिज्ञान चक्षुदर्शनादि क्षायोपशमिक भाव के होते हैं । क्षायिक सम्यक्त्व हो तो वह क्षायिक भाव का होता है । औपशमिक सम्यक्त्व औपशमिक भाव का होता है । जब ३ भाव होते हैं तब ३ की विवक्षा में सम्यक्त्व क्षायोपशमिक भाव का होता है । परन्तु जब क्षायिक अथवा औपशमिक सहित ४ भावों की विवक्षा की जाय, तब सम्यक्त्व क्षायिक अथवा औपशमिक भाव का रहता है। उपशम श्रेणी में ८, ९, १० तथा ११ वाँ इन चार गुणस्थान में ४ अथवा ५ भाव होते हैं । १) औदयिक, २) औपशमिक, ३) क्षायोपशमिक, तथा ४) पारिणामिक ये ४ भाव होते हैं । जब क्षायिक सम्यक्दृष्टि जीव उपशमश्रेणी पर आरूढ हो तब क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिकभाव से रहता है । उपशम भाव से उपशम भाव का चारित्र होता है। ___ इसी तरह क्षपक श्रेणी के अंतर्गत ८,९,१० और १२ इन चारों गुणस्थानों पर ४ भाव होते हैं । क्षपक श्रेणी होने से इसमें औपशमिक भाव का सर्वथा अभाव होता है । १, २, ३, ४, तथा १३ वे और १४ वे इन ६ गुणस्थान पर ३ भाव ही होते हैं । १, २, ३ गुणस्थान पर औदयिक, पारिणामिक और क्षायोपशमिक ये ३ भाव होते हैं । १३वे और १४ वे गुणस्थान पर सयोगी और अयोगी केवली के औदयिक क्षायिक तथा पारिणामिक ये ३ भाव होते हैं । केवलज्ञानादि ८ गुणस्थान इनके क्षायिक भाव के प्राप्त होते हैं इसलिए । १४ वे गुणस्थान के पश्चात् जीव जब सिद्ध मुक्त बन जाता है तब आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना १२३१
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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