________________
में से किसी कर्म का उदय न हो इतनी देर तक उपशमन होने से दोनों औपशमिक कक्षा के गुण प्रगट होते हैं। इससे जीव के भाव-अध्यवसाय प्रगट होते हैं। २) क्षायिक भाव___ क्षय का अर्थ है सर्वथा जडमूल से नाश हो जाना । आत्मा पर लगे कर्म संपूर्ण रूप से सर्वथा जडमूल से क्षीण हो जाय, नाश-निर्जरा हो जाय, उसे क्षायिक भाव कहते हैं। आत्मा पर लगे कर्मों में से जिस किसी भी कर्म का संपूर्ण रूप से जडमूल से क्षय-नाश हो जाने पर जिन गुणों का सर्वथा प्रगटीकरण होगा वह क्षायिक भाव से होगा। इस क्षायिक भाव के नौं प्रकार हैं । अर्थात् आत्मा के नौं गुण उन-उन आवरक कर्मों के संपूर्ण क्षय से प्रगट होते हैं । १) ज्ञानावरणीय कर्म के संपूर्ण क्षय से केवल ज्ञान, २) दर्शनावरणीय कर्म के संपूर्ण क्षय से केवल-दर्शन गुण, अन्तराय कर्म के संपूर्ण क्षय से अनन्त की कक्षा के ३) दान, ४) लाभ, ५) भोग, ६) उपभोग, ७) वीर्य, तथा मोहनीय कर्म के संपूर्ण क्षय से ८) क्षायिक सम्यक्त्व, तथा ९) क्षायिक चारित्र के नौं गुण क्षायिक भाव से प्रगट होते हैं।
देखिए, यहाँ चारों घाती कर्म आ चुके हैं। इनके संपूर्ण क्षय से क्रमशः जो जो भाव गुण प्रगट होते हैं वे क्षायिक भाव की कक्षा के होते हैं। लेकिन इनमें अघाती चारों कर्मों का नाम भी नहीं आया है । क्षायिक चारित्र को ही यथाख्यात चारित्र कहते हैं । याद रखिए, सर्वथा संपूर्ण कर्मों का जडमूल से क्षय हो जाने से क्षायिक भाव से जिन गुणों का प्रगटीकरण या प्रादुर्भाव होता है, वे सदा काल अनन्त काल नित्य रूप से रहते हैं । क्षायिक भाव से प्रगट हुए गुण वापिस कभी चले नहीं जाते हैं । पुनः उन गुणों पर कर्मों का आवरण कभी भी नहीं आता है । जैसे क्षायिक भाव का सम्यक्त्व जो प्रगट हो जाता है तो वह कभी भी वापिस नष्ट नहीं हो जाता है। इसी तरह केवलज्ञान-दर्शन आदि के विषय में भी समझना चाहिए । आत्मा निर्वाण पाए वहाँ तक और निर्वाण पाकर मोक्ष में चली जाय वहाँ भी क्षायिक भाव के नौं ही गुण अनन्तकाल तक बरोबर प्रगट रहते ही हैं । इसी तरह अनन्त दान-लाभादि के विषय में भी समझना चाहिए। ३) मिश्र-क्षायोपशमिक भाव
__ कुछ कर्मों का क्षय हो और कुछ कर्मों का उपशमन हो ऐसी स्थिति को मिश्रभावकहते हैं । अर्थात् दोनों आधे आधे (या मिले हुए) मिश्रित भाव हैं । उन्हें मिश्रभाव नाम दिया है । या फिर क्षायोपशमिक एक मिश्रित नाम दिया जाता है । दोनों नामों में बात एक
१२२६
आध्यात्मिक विकास यात्रा