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________________ १३ वे सयोगी केवली गुणस्थान पर आरोहण १२ वे क्षीण मोह पर वीतरागी बना हुआ क्षपक श्रेणी का क्षपक साधक १२ वे गुणस्थान के चरम समय में ज्ञानावरणीय आदि तीनों घाती कर्मों का क्षय करने पर १२ गुणस्थान पूरा समाप्त हो जाता है। जब तक ये तीनों घाती कर्म सत्ता में पडे थे तब तक १३ वाँ गुणस्थान नहीं आ पाता है और १२ वाँ पूर्ण नहीं हो पाता है । लेकिन जैसे ही ये तीनों घाती (एक मोहनीय तो पहले हो ही चुका है अतः १ + = ४) कर्मों का क्षय होने पर वीतरागी महात्मा सीधे १३ वे सयोगी केवली गुणस्थान पर आरूढ हो जाते हैं । और जैसे ही १३ वे गुणस्थान पर पैर रखते हैं... प्रवेश करते हैं कि ... तुरन्त केवलज्ञान - केवलदर्शन की प्राप्ति हो जाती है । इन गुणों की प्राप्ति के आधार पर वीतरागी महात्मा उन गुणों के धारक केवली = केवलज्ञानी - सर्वज्ञ बनते हैं, केवलदर्शी सर्वदर्शी बनते हैं । साथ ही अनन्त वीर्यवान्, अनन्त शक्तिशाली बन जाते हैं। गुणों के धारक गुणवान गुणी बनते हैं । कर्मक्षय के कारण गुणों का अभ्युदय होता है । प्रगटीकरण होता है । 1 १) मोहनीय कर्म के क्षय से - वीतरागता गुण की प्राप्ति । २) ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से - केवलज्ञान गुण की प्राप्ति । ३) दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से- केवलदर्शन गुण की प्राप्ति । ४) अन्तराय कर्म के क्षय से - अनन्तवीर्य गुण की प्राप्ति । अ. ज्ञान आयुष्य ज्ञानावरणीय आत्मा घाती कर्म ४ दर्शनावरणीय मोहनीय वेदनीय गान आत्मा ale अ.दर्श आत्मा के गुणों: अ. चारित्र प्रादुर्भाव अ. वीर्य आत्मा आठों कर्मों से प्रस्तावस्था में संसार में अनादि काल से है । इस बीते हुए अनन्त काल में अनन्त वर्ष–अनन्त भवों का काल बिताती हुई इस आत्मा ने एक भी कर्म संपूर्ण कभी खपाया ही नहीं था। वह जीव आज अनन्तकाल के बाद सर्वप्रथम बार चारों घाती कर्मों का क्षय करके ४ गुणों को प्रगट कर पाया है। ऐसी स्थिति में आत्मा अर्ध 1 आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना १२२१
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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