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कौन बलवान है ? आत्मा कि कर्म ?
" कत्थवि बलिओ अप्पा... कत्थवि बलिओ कम्मो" ।
जड पुद्गल परमाणु स्वरूप कार्मण वर्गणा का बना हुआ पिण्ड जो आत्मप्रदेशों पर आवरण की तरह चिपका हुआ है यह कितना आत्मगुणघातक है ? नुकसानकारक है ? एक तरफ निष्क्रिय-जड कर्म और दूसरी तरफ अनन्त शक्तिशाली चेतन आत्मा जो सक्रिय है। इन दोनों में कौन बलवान है ? बलाबल की विचारणा करने पर आश्चर्य लगता है कि इतनी अनन्त शक्तिवाला होते हुए भी चेतन - आत्मा जड-अजीव पुद्गल परमाणुओं के पिण्डरूप कर्म के आधीन होकर, उसकी जंजीर के बंधन में बंधा हुआ एवं गुलाम बना हुआ अनन्त कालचक्र संसार में बितानेवाला यह जीव ज्ञानियों के लिए कितनी दया का पात्र है ? आखिर कर्म जड है। ये न तो बांधकर रखते हैं. न ही जकड़कर रखते हैं । ये तो चेतन जीवात्मा स्वयं ही बांधकर अपने आप ही उसके आधीन होकर बैठा है। जैसे कोई बच्चा अपने ही हाथों अपने पैरों में कच्चे सूत का धागा भी बारबार लपेटकर स्वयं ही उस बंधन में बंध जाता है । या कोई युवक एक प्रेयसी - प्रेमिका के मोह में, राग में फस जाता है और फिर उसे 'पाने के लिए छटपटाता है, बेचैनी का अनुभव करता है । चिन्ताग्रस्त स्थिति में कामज्वर के कारण अनिद्रा का भोगी बनता है । बताइये, इसमें किसने बांधा है उस युवक को ? प्रियतमा तो काफी दूर है, वह तो आई भी नहीं है। फिर भी प्रियतम उसमें आसक्त बनकर राग- बुद्धि से खींचा जाता है और स्वयं ही बंधन में बंधता है। और फिर दुनिया को यह कहे कि अरे रे... मुझे किसी ने बांध नहीं रखा है। फिर भी मैं अपने आप को बंधा हुआ ही महसूस करता हूँ ।
यह बात तो ऐसी हुई जैसे मानों एक युवक ने रास्ते पर बिजली के खम्भे को पकड रखा हो और फिर चिल्ला रहा हो कि ... बचाओ ... बचाओ ... । रास्ते पर चलते हुए मुसाफिर दया भाव से छुडाने भी जाय तो बिजली का धक्का लगने का डर लगता है । कोई निडर व्यक्ति जैसे जैसे छुडाने का प्रयत्न करते हैं वैसे वैसे वह युवक और मजबूती से दोनों हाथों को परस्पर भिडाता है और पुनः चिल्लाने लगता है बचाओ ... बचाओ । यह कैसा अजीब न्याय है। अब आप ही सोचिए ! क्या खम्भे ने युवक को पकडा है ? या युवक ने खम्भे को पकड़ा है ? आखिर बात क्या है ? और सचमुच यदि बिजली का शॉक लगा होता तो युवक जिन्दा रहता क्या ? अरे ! कब का मर चुका होता और दूर फेंक दिया गया होता। फिर क्या चिल्लाता ? किसने किसको पकडा है ? खम्भा तो जड है । एक जड खम्भा कैसे पकडेगा ? चेतन जीव तो युवक स्वयं है । सोचिए ।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा