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शुक्ल प्यान के शुक्ल ध्यान के तृतीय पाये का ध्यान
द्वितीय पाये का ध्यान १३ वा गुणस्थान प्रथम पाये का ध्यान १२ चे गुणस्थान [१२ चे से पहले
इस तरह शुक्लध्यान के ४ भेद के ३ अवस्था में भिन्न-भिन्न गुणस्थानों पर कहाँ किस-किस प्रकार का ध्यान होता है उसका विभाजन उपरोक्त तरीके से दर्शाया है। कहने के लिए तो नाम एक ही है शुक्लध्यान का। सभी शुक्ल ध्यान ही कर रहे हैं। वैसे भी जब ८ वे गुणस्थान अपूर्वकरण या ७ वे गुणस्थान से भी शुक्ल ध्यान प्रारम्भ हो जाता है तब शुक्लध्यान का कौन सा अंश या कौन सा प्रकार ध्यान का होता है ? सीधे ही २ रे या ३रे,४ थे प्रकार का शुक्लध्यान आना या होना तो वैसे भी सम्भव नहीं है । धर्मध्यान की प्रमुखता ६ ठे-७ वे गुणस्थान तक अच्छी थी। बस, धर्मध्यान की शुरुआत ४ थे गुणस्थान से है । जो आगे... बढते-बढते ५ वे, ६ ढे, और ७ वे गुणस्थान तक अपनी चरप कक्षा पर पहँच जाता है। चारों प्रकार के धर्मध्यान के भेद प्रभेदादि की साधना अधिकांश रूप से ७ वे गुणस्थान तक चलती है। और ८ वे गुणस्थान से शुक्लध्यान के प्रथम प्रकार की ध्यान साधना प्रारम्भ हो जाती है । वैसे तो शुक्ल ध्यान के प्रथम चरण की साधना छटे गुणस्थान से भी हो जाती है। निश्चयनय से तो ४ थे गुणस्थान से भी शुक्लध्यान प्रारम्भ किया जा सकता है । ऐसा ही कोई श्रेष्ठ साधक हो और ४ थे गुणस्थान से ही यदि कोई साधक क्षपक श्रेणी का व्यवहार से प्रारम्भ करे और फिर ८ वे गुणस्थान से संपूर्ण शुद्ध श्रेष्ठ कक्षा की क्षपक श्रेणी प्रारम्भ करता जाय तो सीधा ही आगे पहुँच सकता है । इसलिए छट्ठा, ७ वाँ गुणस्थान धर्मध्यान और शुक्लध्यान का सन्धिस्थान है । धर्मध्यान भी चलता है और शुक्लध्यान के प्रथम चरण की स्थिति भी आ जाती है। इस तरह व्यवहारनय से छठे गुणस्थान से और निश्चयनय से ८ वे गुणस्थान से शुक्ल ध्यान के प्रथम भेद की ध्यान साधमा प्रारम्भ हो जाती है, जो ११ वे गुणस्थान पर्यन्त चलती है। इस तरह प्रधान रूप से श्रेणी के गुणस्थान में शुक्लध्यान के प्रथम भेद की ध्यान साधना चौथे, पांचवे गुणस्थान पर्यन्त चलती है । १२ वे क्षीण मोहनीय गुणस्थान पर वीतराग
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
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