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पहले २८ तो क्या अनेक गुणों को इसी मोहनीय कर्म की सभी प्रकृतियों ने बंधकर रखी हैं। बस, जिस जीव ने जितने अंश में मोहनीय कर्म खपाया-क्षय करके रखा है उतने अंश में क्षमा-समता-करुणादि सभी गुण उदय में आए-प्रकट हुए मिलेंगे। यदि आपका मोहनीय कर्म सिर्फ आधा या एव प्रतिशत ही क्षयोपशम हुआ होगा तो क्षमा समतादि भी आपके आधा या एव प्रतिशत ही उदय में प्रगट हुए मिलेंगे। और यदि आपके क्षयोपशम में १०% से २०% की मात्रा होगी तो आपके गुणों के उदय का प्रमाण भी उतने ही प्रतिशत रहेगा। इस तरह कर्मक्षय या क्षयोपशम का प्रमाण जितना रहेगा उतना ही प्रमाण आत्मगुणों के प्रगटीकरण का होगा।
- आपने सूर्य का ग्रहण
देखा ही होगा। सूर्य जब - राहु से आवृत्त हो जाता है तब कैसी स्थिति बनती है?
और जैसे जैसे राहु का विमान हटता जाता है वैसे
वैसे सूर्य दिखाई देने लगता है, प्रकाश उतने ही अंश में फैलेगा। और जितना आवृत्त अंश होगा उतना दिखाई भी नहीं देगा। और जितने अंश में आवृत्त नहीं होगा उतना भाग स्पष्ट दिखाई देगा। ठीक इसी तरह आत्मा और कर्म का भी है। आत्मा सूर्य के समान तेजस्वी ज्ञानादि गुण से परिपूर्ण समृद्ध है । तथा कर्म राह के जैसा है। कर्म से ग्रसित आत्मा संसार में है । अतः जितने प्रमाण में कर्म का क्षय-क्षयोपशम होगा उतने ही प्रमाण में आत्मा के ज्ञानादि-क्षमादि गुण प्रगट होंगे। मोहनीय कर्म से आवृत्त गुण
१) अनन्त ज्ञान, २) अनन्त दर्शन, ३) अनन्त चारित्र (या यथाख्यात स्वरूप),४) अनन्त वीर्य (शक्ति) ५) अनामी, अरूपी आदि, ६) अगुरुलघु, ७) अनन्त सुख, ८) अक्षय स्थिति। ये प्रमुख ८ गुण आत्मा के हैं। वैसे अनन्त गुणों का भण्डार, खजाना ही आत्मा नामक द्रव्य है। ये मुख्य ८ गुण कर्मों से आवृत्त हो जाते हैं
जान
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आध्यात्मिक विकास यात्रा