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________________ चिनगारी जैसे पूरे गोडाउन या मार्केट को जलाकर भस्मीभूत कर सकती है, या एक तिनका मात्र भी भयंकर विस्फोट कर सकता है, वैसे ही यहाँ आध्यात्मिक क्षेत्र में... उपशान्त हुआ छोटा सा कर्म, या छोटी सी कर्म की प्रकृति भी कहाँ गिरा दे? कब उसका उदय हो और आत्मा को नीचे फेंक दे, कहाँ किस स्थान से गिरा दे? कोई ठिकाना नहीं है। यदि कर्म सत्ता में पड़ा है तो निश्चित रूप से कभी न कभी तो उदय होगा ही होगा। और ऐसे उदय की अवस्था में कर्म बलवान आत्मा को भी उठाकर फेंक देता है । बस, पतन शुरु हुआ कि गए नीचे। हो सकता है गिरते गिरते...जिस मिथ्यात्व से शुरुआत की थी पुनः वहीं जाकर गिर सकता है। कर्म पर क्या कभी अंश मात्र भी विश्वास रखना चाहिए? आत्मा का अनादि कालीन शत्रु कर्म ही है । आत्मगुणों का घातक अहित करनेवाला भयंकर शत्र कर्म ही है। और इसमें ही आत्मा को अनन्तकाल से संसार चक्र में परिभ्रमण करते रहना पडता है । तैली के बैल की तरह चार गति के चक्र में गोल गोल घूमते रहना पडता है। बस, संसार कर्म के स्वरूप को साद्यन्त अच्छी तरह समझकर कोई भी साधक अपनी आत्मा को भी पूर्ण स्वरूप में अच्छी तरह पहचान कर उपायरूप धर्म का आचरण करके निर्जरा द्वारा आत्मा को कर्म के बन्धन से सदा के लिए मुक्त कर ले इससे बढकर कोई बडा ज्ञानी, महात्मा ही नहीं है । यही संसार का सर्वोत्तम सर्वोपरि महान है । यही सबका साध्य होना चाहिए । चरम लक्ष्य होना चाहिए । बस, इसमें सब कुछ समा गया। इसके अतिरिक्त कुछ भी जानने-करने जैसा है ही नहीं और इसके सिवाय दूसरा कुछ भी करने जैसा है ही नहीं । इस कार्य को संपूर्ण रूप से करना ही चाहिए। तभी सिद्धि हासिल होगी। क्षपक श्रेणी में -१२ वाँ गुणस्थान गुणस्थानों के सोपान जो क्रमशः ऊपर ही ऊपर चढते-चढते क्रम से हैं। उसमें भी ८ वे गुणस्थान से साधक यदि क्षपक श्रेणी का प्रारंभ कर लेता है तो फिर उसको तो कहीं गिरने का या रुकने का प्रयोजन ही नहीं रहता है । कहीं भी ज्यादा तो रुकना ही नहीं है। क्योंकि ८ वे गुणस्थान से यदि.क्षपकश्रेणी का प्रारंभ करता है तो सभी गुणस्थान का काल अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त काल का ही है । अंतर्मुहूर्त ४८ मिनिट = २ घडी का ही होता है । ८ वे गुणस्थान का काल-अंतर्मुहूर्त का है। फिर ९ वाँ, १० वाँ, और सीधा १२ वाँ गुणस्थान । ये चारों गुणस्थान अन्तर्मुहूर्त काल की अवधि के ही हैं । अतः चारों का काल मिलाकर भी जो बनता है वह ४ अंतर्मुहूर्त अर्थात् ८ घडी का ही है । वर्तमान काल की गणना के हिसाब से ३ घंटे और १२ मिनिट का समय होता है । जन्मों-जन्म ११८६ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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