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________________ के सभी कर्म आज इस जन्म में अर्थात् अन्तिम जन्म में वह भी श्रेणी के शुभारंभ के पश्चात् सिर्फ ८ घडी (३ घंटे १२ मिनट) भर के थोडे से समय में ही क्षय करके मुक्त होना है। क्षपक श्रेणी की अग्नि ध्यानरूपी अग्नि दावानल से भी इतनी ज्यादा प्रज्वलित और प्रबलमत कक्षा की होती है कि... इसमें जन्मोजन्म के कर्मों की आहुति हो जाती है । सभी जलकर भस्मीभूत हो जाते हैं। आत्मा कर्म रहित बनकर मुक्त बन जाती है । इस क्षपक श्रेणी गुणस्थान में ८, ९, १०, इन तीन गुणस्थान के स्वरूप का वर्णन पहले कर चुके हैं। ये तीनों गुणस्थान दोनों श्रेणी के लिए हैं। उपशम और क्षपक दोनों श्रेणी के साधक इन तीनों गुणस्थान का उपयोग करते हैं। आखिर कार्य तो एक ही है, कृत कर्मक्षय का । उद्देश्य - लक्ष्य भी समान ही है, मुक्ति का । लेकिन साधना की पद्धति में अन्तर पड जाता । एक क्षपक जडमूल से कर्मक्षय करता हुआ आगे बढता है जबकि दूसरा... उन कर्मों को शमाता हुआ, दबाता हुआ, या ऊपर ऊपर से काटता हुआ आगे बढता है । अतः ८, ९ और १० ये तीन गुणस्थान दोनों श्रेणीवालों के लिए समानरूप से साधारण ही हैं । = I लेकिन ११ वाँ, तथा १२ वाँ ये दो गुणस्थान दोनों के लिए अपने अपने स्वतंत्र हैं । "ये मिश्रित अवस्था के समानरूप नहीं है। जैसी जिसकी साधना पद्धति थी वैसी ही उसकी प्रगति हुई । आखिर अन्त में आकर शमन की या क्षपक की जैसी भी साधना थी उसको वहाँ उस गुणस्थान पर रुकना पडा । उपशम श्रेणी को निश्चित पतन की श्रेणी कहा है । अतः वह ११ वे गुणस्थान पर आकर श्रेणी समाप्त हो जाती है। पूरी हो जाती है । अतः ११ वे गुणस्थान को पतन का गुणस्थान कहा जाता है । दूसरी तरफ क्षपक श्रेणीवाले के लिए तो पतन का -गिरने का सवाल ही खड़ा नहीं होता है । वह तो सीधे ही आगे बढता है । वह श्रेणी का अन्त नहीं लाता है, परन्तु अपने कर्मों का, इस भव का, संसार का ही अन्त लाता है । इसलिए ११ वाँ गुणस्थान जो उपशम श्रेणीवाले का घर है, विश्रान्ति स्थान स्वरूप है उस पर क्षपकवाला जाता ही नहीं है । मुसाफरी में जैसे हम बीच के स्टेशन छोड देते हैं वैसे क्षपकवाला साधक ११ वे गुणस्थान को छोडकर १० वे गुणस्थान से सीधे छलांग लगाकर १२ वे गुणस्थान पर आ जाता है । १२ वाँ गुणस्थान यह क्षपक श्रेणीवाले क्षपक साधक का विश्रान्ति स्थान या घर है । फिर भी कोई ज्यादा विश्रान्ति नहीं है । सिर्फ I 1 २ घडी के अन्तर्मुहूर्त परिमित - सीमित काल की ही विश्रान्ति है । हमारी भाषा में हम नासमझों के लिए विश्रान्ति शब्द का प्रयोग करके समझाया जा सकता है लेकिन ... हकीकत में तो यहाँ १२ वे गुणस्थान पर भी क्षपक साधक बहुत बडा काम करता है । आखिर जिस जोर और उत्साह से उसने प्रबल शक्ति से समस्त कर्मों का क्षय करने का आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना ११८७
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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