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अध्याय - १७
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
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क्षपक श्रेणि में - १२वां गुणस्थान.. नामकरण और कार्य ...... वीतरागतादि गुणों का आनन्द.. सादि - अनन्त गुण स्थिति.. वीतरागता की प्राप्ति कहां ?.. गुणस्थानों के नामकरण की व्यवस्था क्षीण मोहनीय १२वे गुणस्थान का कार्य. सिर्फ २ समय में प्रकृतियों का क्षय .. अनादि कालीन कर्मबंध की आदत.. कौन बलवान है ? आत्मा कि कर्म ?.
८ कर्मों में २ विभाजन..
१३वे सयोगी गुणस्थान पर आरोहण. क्या केवलज्ञानादि पुण्योदयजन्य है ?.
.१२२४
.१२३१
.१२३३
.१२३६
.१२६०
वाणी के ३५ गुण...... अनन्तज्ञान- केवलज्ञान... केवलज्ञान पानेवाले अनेक महात्मा.
.१२६४
१२६९
.१२९२
कैवल्य प्राप्ति का राजमार्ग....... क्या स्त्री को केवलज्ञान हो सकता है यै नहीं ?.....१२९६ ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम और क्षय से ज्ञान... १२९८
.१३०७
१३१३
.१३१६
१३२०
.१३२८
१४ गुणस्थानों में ५ भाव...
तीर्थंकर के लिए समवसरण. भगवान बनने की प्रक्रिया......
१९८६
.११९०
. ११९१
.११९५
. ११९८
.१२०१
.१२०२
.१२११
.१२१२
.१२१६'
.१२१८
.१२२१
१३वे गुणस्थान पर भी कर्मबंध...
केवली को प्रदेशबंध और स्थिति..
१३वे गुणस्थान का स्थिति काल... केविलभुक्ति सिद्धि....
केवलि समुद्घात की प्रक्रिया.
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